Shayari means "poetry" in english. But even after being synonymous to each other , both represent a very different depth to expression of the writer. Shayari is magical as it can mean different for every set of eyes that taste it through the sense of sight. It has no topic or a targeted demographic. It is made for everyone and everything. Though the great works in Shayari cannot be replicated but yes a new content based on our modern society can be created. The timelessness of shayari awaits.
Goodmorning, jai siya ram एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज को किसी संत ने बताया की पुरी जगन्नाथ जी में तो साक्षात भगवान ही दर्शन देते हैं। बस फिर क्या था सुनकर तुलसीदास जी महाराज तो बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्री जगन्नाथ पुरी को चल दिए। महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब जगन्नाथ पुरी पहुंचे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देखकर प्रसन्नमन से अंदर प्रविष्ट हुए। जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का सा लगा, वे बडे निराश हो गये और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव, जगत के सबसे सुंदर और नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते।इस प्रकार दुखी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये। सोचा कि इतनी दूर आना व्यर्थ हुआ। क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपादविहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है ? कदापि नहीं। रात्रि हो गयी, थके-माँदे, भूखे-प्यासे तुलसी का अंग टूट रहा था। अचानक एक आहट हुई, वे ध्यान से सुनने लगे।एक छोटासा बालक - अरे बाबा ! कह कर पुकारा रहा था। तुलसीदास जी - कौन है ?एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था। तुलसीदास जी ने सोचा साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदास जी भी दर्शन करने को आए हैं इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया होगा। उठते हुए बोले - हाँ भाई ! मैं ही हूँ तुलसीदास।बालक ने कहा, 'अरे ! आप यहाँ है ? मैं बड़ी देर से आपको खोज रहा हूँ। लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है।'तुलसीदास जी बोले - भैया कृपा करके इसे वापस ले जाये।बालक ने कहा, - आश्चर्य की बात है, 'जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ' और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप अस्वीकार कर रहे हैं। कारण ?तुलसीदास जी बोले, - 'अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता, फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूँ, यह मेरे किस काम का ?'बालक ने मुस्कराते हुए कहा अरे, - बाबा ! आपके इष्ट ने ही तो भेजा है।तुलसीदास जी बोले - यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता।बालक ने कहा - फिर आपने अपने "श्रीरामचरितमानस" में यह किस रूप का वर्णन किया है -*"बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।**कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना।।**आनन रहित सकल रस भोगी।**बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।"*अब तुलसीदास जी की भाव-भंगिमा देखने लायक थी। नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे।थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि "मैं ही तुम्हारा राम हूँ। मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है, विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना।"तुलसीदास जी की स्थिति ऐसी की रोमावली रोमांचित थी नेत्रों से अश्रुधार अविरल बह रही थी और शरीर की कोई सुध ही नहीं उन्होंने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया।प्रातः मंदिर में जब तुलसीदास जी महाराज दर्शन करने के लिए गए तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण एवं माता जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवान ने भक्त की इच्छा पूरी की। भगवान अपने भक्तों को हमेशा अपने सानिध्य में ही रखते है। और तुलसीदास तो उनके परम भक्त थे। और भगवान ने उनको अपने इस्ट के रूप में दर्शन दिए। जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान 'तुलसी चौरा' नाम से विख्यात हुआ। वहाँ पर तुलसीदास जी की पीठ 'बड़छता मठ' के रूप में प्रतिष्ठित है। जय श्री कृष्णजय श्री राम
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thank God my blog is start working again
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🌷🌷इक लम्हा भी मुहब्बत का नसीब ना हुआ कभी 🌷🌷 🌷🌷और तुम कहते हो कि दिल के बहुत अमीर हैं हम !🌷🌷
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दिल करता है तुम पर ऐसा password लगाऊं shayaripub.in pub.in अगर तुम्हे कोई देखे भी तो पहले OTP मेरे पास आए जीवन मे हमेशा_ अच्छा सोचिए, अच्...
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