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Parvati satuti # पार्वती स्तुति

                  कुंआरी लड़कियां करती हैं मन पसंद वर पाने के लिए यह स्तुति 


                  ⚘🌹सीताजी द्वारा पार्वती -स्तुति🌹⚘
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता॥
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।॥
भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि॥
पतिदेवता सुतीय महुं मातु प्रथम तव रेख
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।॥

सेबत तोही सुलभ फल चारि बरदायनी पुरारि पिआरी।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।॥
मोर मनोरथुजानहु नीकें। बसह सदा उर पुर सबही कें॥
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं ।॥
बिनय प्रेम बस भई भवानी । खसी माल मूरति मुसुकानी॥
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी॥
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा॥

मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
  करुना निधान सुजान सीलु सनेहु  जानत रावरो।॥

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली ।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥
     जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
        मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।

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जय सीयाराम

⚘जिन्ह जिन्ह देखे पथिक प्रिय सिय समेत दोउ भाइ।⚘
⚘भव मगु अगमु अनंदु तेइ बिनु श्रम रहे सिराइ॥ ⚘

अर्थ:-प्यारे पथिक सीताजी सहित दोनों भाइयों को जिन-जिन लोगों ने देखा, उन्होंने भव का अगम मार्ग (जन्म-मृत्यु रूपी संसार में भटकने का भयानक मार्ग) बिना ही परिश्रम आनंद के साथ तय कर लिया (अर्थात वे आवागमन के चक्र से सहज ही छूटकर मुक्त हो गए)॥ 

                         ⚘श्री रामचरित मानस 
                          अयोध्याकांड (१२३)⚘
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प्रभु की चाह में चाह मिलाने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।
बस जीते जी मर जाने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।।

जीवन की अंधेरी रातों के दुःख द्वंद्व भरे तूफानों में ,
विश्वास के दीप जलाने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।।

प्रभु की चाह में चाह मिलाने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।

ऑखों से बरसते हो आॅसू और अधरों पर मुस्कान रहे, 
एक संग में रोने गाने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।।

प्रभु की चाह में चाह मिलाने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।।

जिसमे सुख दिखता मिलता नहीं राजेश्वर ऐसे जीवन को,
तर कर दे उसी तराने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।

प्रभु की चाह में चाह मिलाने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।
बस जीते जी मर जाने को भगवान की भक्ति कहते हैं ।।

               🙏परम विभूति आदरणीय गुरुदेव श्री राजेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज  के पावन पक्तियों के साथ आप सभी को जय श्री*ऋषी चिंतन*
‼️‼️‼️‼️‼️‼️‼️
*भक्ति करनी है तो संसार के प्रपंच की चिंता छोड़नी पड़ेगी । जैसे सैनिक बनने के लिए गोली लगने की चिंता छोड़नी पड़ती है वैसे ही भक्ति करने के लिए संसार के प्रपंच को छोड़ना पड़ता है ।*

*हम प्रभु के लिए ही बने हैं इसलिए हमारा अस्तित्व ही प्रभु से है ।*

*व्याधि यानी शरीर का रोग और आधि यानी मन का रोग दोनों का नाश करने वाले प्रभु के श्रीकमलचरण होते हैं ।*

*जिस किसी उपासना या कर्मकांड के साथ भक्ति नहीं जुड़ती तब तक उससे हमारा पूर्ण कल्याण नहीं होता । सूत्र यह है कि पूर्ण कल्याण के लिए भक्ति का होना परम आवश्यक और परम जरूरी है ।*

*भक्ति करने वाले को इहलोक और परलोक दोनों की चिंता नहीं करनी पड़ती क्योंकि उसका इहलोक और परलोक दोनों में मंगल-ही-मंगल होता है ।*

*जीवन में हमें भक्ति मार्ग पर ही आगे बढ़ना चाहिए ।*

*मन की समस्या यानी आधि का समाधान किसी भी उपासना या कर्मकांड से संभव नहीं है । यह सिर्फ भक्ति से ही संभव है ।*

*अनेक जन्मों के अर्जित पुण्यों से ही हम प्रभु की तरफ जा पाते हैं, नहीं तो लोग पूरे जीवन संसार में ही उलझे रहते हैं और अपना मानव जन्म व्यर्थ कर लेते हैं ।*

*भक्ति हमें संसार के व्यवहार से हटाकर प्रभु प्राप्ति तक ले जाती है जो कि मानव जीवन का सच्चा उद्देश्य होता है ।*
*सच्चा भक्त सदैव अपने को संसार से छुपा कर रखता है ।* 
                 ⚘जय सियाराम ⚘
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Goodmorning

तुम्हारा  एक प्रणाम🙏🏼 बदल देता है सब परिणाम ।।          Shayaripub.in