।। जय सियाराम* ।।
रामचरित मानस सद्गुरु बनकर क्रोध को दीक्षित करता है।
जैसे भगवान परसुराम का क्रोध मानस में प्रभु की वाणी सुनकर दीक्षित हुआ....
इसलिए मानस चाहता है कि हम जैसे सामान्य आदमी का भी क्रोध दीक्षित हो...
⚘⚘सुनि मृदु गूढ़ बचन रघुपति के। ⚘⚘
⚘⚘उघरे पटल परसुधर मति के॥⚘⚘
...*बापू*
।। नवमी ।।
श्री पंचमुखी दरबार,रामकथा,भीलवाड़ा.
कीर्तन भी तब घटित हो सकता है जब जीव कीर्ति और तन इन दोनों से ऊपर उठ जाए। गा तो खूब रहा है पर अपनी कीर्ति का भी चिंतन है और अपने तन पर भी उसका विचार है तो उसके द्वारा कीर्तन कभी सम्भव नहीं हो पाएगा।
ये बात अलग है कि हरिनाम तो बड़ा उदार है कोई कैसे भी कहे।
भाव कुभाव अनख आलसहु। नाम जपत मंगल दिशि दसहु।।
ये बात अलग है। पर हरिनाम का प्रभाव हृदय में तभी होगा जब जीव न तो अपनी कीर्ति की परवाह करे न यश की परवाह करे और न स्वरूप की परवाह करे।
मीराजी को जहर का प्याला भेजा उन्होनें न जहर की चिंता करी। लोगों ने बड़ी गालियाँ दी न उन्होनें गाली की परवाह करी। कितनी सुन्दर बात कही। इसी पद में कीर्तन की परिभाषा दी है-
लोग कहे मीरा भयी बाँवरी, सास कहे कुल नाशी रे।
पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे।।
अगर कीर्ति की चिंता होती तो लोग कहे मीरा भयी बाँवरी सास कहे कुल नाशी रे किसी को यश की चिंता होती तो वो यहीं रुक जाता। पर सब गाली दे रहे हैं मीरा फिर भी नाच रही है।
।। परमाराध्य पूज्य श्रीमन्माध्वगौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
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