मूक साक्षी सा बना हुआ है आज वो, अपने ही घर में
आज बेगाना लगता है अपना घरअपना परिवार
टूट गया है आत्मबल, समझ रहा खुद को बेकार
बहू रानी, पूछ के जाती है ,डैडीजी साथ चलोगे क्या
हम सब के तो काम बहुत हैं, आप वहां करोगे क्या
थका हुआ हूँ आज बहुत मैं साथ नहीं जा पाऊंगा
घर में खाना बना पड़ा है मैं खा कर सो जाऊंगा
नजर हुईं कमजोर मगर अब ज्यादा साफ नजर आता है
कैसे बेटा मीठा बन पेंशन सारी खा जाता है
एक तारीख के आते ही बेटा बाप से बतियाता है
बूढ़ा बाप दो पल में देखो, सारे दर्द भूल जाता है
अवसाद ग्रस्त वो बैठा है अपने भरे परिवार में साहब
जैसे कोई चित्र उकेरा बिना रंग दिवार में साहब
टेबल पर पड़ा खाना, इशारा करता है अब खा ले
बंद कर अपना कमरा, किसी याद का दीया जला ले
तू जायेगा तो ही तो परिवार यहां खाना खायेगा
तुझको देना भूल गई पकवान बहू को याद आयेगा
खुश हो कर जब वयोवृद्ध छोटी सी बात सुनाते हैं
बेटा कहता एक बात को बार बार कयूं दोहराते हैं
पता लगा है बेटी ने अगले माह तक आना है
दिल में जो भी चला है अपने सारा उसे बताना है
उसकी माँ के बाद से ही, वो मुझे मेरी माँ सी लगती है
मुझ से ज्यादा मेरी चिंता हर पल उसको रहती है
दवाई खाने की हिदायत फोन पे बेटी देती है
याद वो करती है माँ को, थोड़ा सा रो लेती है
पोता इतना प्यार करे हर दुःख भूल ही जाता है
उसके बचपन में जिगर का टुकड़ा नजर ही आता है
उम्र तो बढ़ती जाती है, कम दोस्त हो जाते हैं
चलना फिरना मुश्किल लगता घर में कैदी बन जाते हैं
दर्द, कठिनाईयाँ वयोवृद्ध की निज सन्तान न जान सके
बूढ़ी आंखों में मायूसी, कोई न पहचान सके
एकल और लाचार जनक बेटे को नजर नहीं आता है
जो पत्नी जी फरमाती हैं, बाप के आगे दोहराता है
बुढ़ापा कुदरत की नियति है इस से जुदा नहीं हो तुम
बच्चे तो बच्चे रहते हैं बाप के खुदा नहीं हो तुम
कर्म सही करते जाओ अपने घर में संस्कार भरो
सम्मान करो हर एक उम्र का घर उपवन में प्यार भरो
समय मांगते हैं वो आपसे कुछ पल बिता लिया करो
घर परिवार सब उनका है उन पर जता दिया करो
मन्दिर मन्दिर घूम लिया सब अब अन्दर जांना होगा
फर्ज पिता के कर्ज हैं तुम पर उनको लौटाना होगा
आत्मबल घर के बरगद का अब वापस लाना होगा
आत्मबल घर के बरगद का अब वापस लाना होगा
अचला एस गुलेरिया
हिन्दी शायरी दिल से
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