गुहँ सँवारि साँथरी डसाई।
कुस किसलयमय मृदुल सुहाई॥
सुचि फल मूल मधुर मृदु जानी।
दोना भरि भरि राखेसि पानी॥
अर्थ:-गुह ने (इसी बीच) कुश और कोमल पत्तों की कोमल और सुंदर साथरी सजाकर बिछा दी और पवित्र, मीठे और कोमल देख-देखकर दोनों में भर-भरकर फल-मूल और पानी रख दिया (अथवा अपने हाथ से फल-मूल दोनों में भर-भरकर रख दिए)॥
श्री रामचरित मानस
अयोध्याकांड (८७)
🌺 जय सीयाराम 🌺
हिन्दी शायरी दिल से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें