धन ! तो हमारा भी काला है
पर !
उसका नाम ! मुरली वाला है
राधे - राधे 🙏*
*भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा जीवन परिचय जिसे जानकर हो जायेंगे आप हैरान*
*भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा परिचय जिसे शायद आपने पहले कभी सूना या पढ़ा होगा । 3228 ई.पू., श्रीकृष्ण संवत् में श्रीमुख संवत्सर, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, 21 जुलाई, बुधवार के दिन मथुरा में कंस के कारागार में माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया, पिता- श्री वसुदेव जी थे । उसी दिन वासुदेव ने नन्द-यशोदा जी के घर गोकुल में छोड़ा ।*
*1- मात्र 6 दिन की उम्र में भाद्रपद कृष्ण की चतुर्दशी, 27 जुलाई, मंगलवार, षष्ठी-स्नान के दिन कंस की राक्षसी पूतना का वध कर दिया ।*
*2- 1 साल, 5 माह, 20 दिन की उम्र में माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन अन्नप्राशन- संस्कार हुआ ।*
*3- 1 साल की आयु त्रिणिवर्त का वध किया ।*
*4- 2 वर्ष की आयु में महर्षि गर्गाचार्य ने नामकरण-संस्कार किया ।*
*5- 2 वर्ष 6 माह की उम्र में यमलार्जुन (नलकूबर और मणिग्रीव) का उद्धार किया ।*
*6- 2 वर्ष, 10 माह की उम्र में गोकुल से वृन्दावन चले गये ।*
*7- 4 वर्ष की आयु में वत्सासुर और बकासुर नामक राक्षसों का वध किया ।*
*8- 5 वर्ष की आयु में अघासुर का वध किया ।*
*9- 5 साल की उम्र में ब्रह्माजी का गर्व-भंग किया ।*
*10- 5 वर्ष की आयु में कालिया नाग का मर्दन और दावाग्नि का पान किया*
*11- 5 वर्ष, 3 माह की आयु में यमुना में गोपियों का चीर-हरण किया ।*
*12- 5 साल 8 माह की आयु में यज्ञ-पत्नियों पर कृपा की ।*
*13- 7 वर्ष, 2 माह, 7 दिन की आयु में गोवर्धन को अपनी उंगली पर धारण कर इन्द्र का घमंड भंग किया ।*
*14- 7 वर्ष, 2 माह, 14 दिन का उम्र में में श्रीकृष्ण का एक नाम ‘गोविन्द’ पड़ा ।*
*15- 7 वर्ष, 2 माह, 18 दिन की आयु में नन्दजी को वरुणलोक से छुड़ाकर लायें ।*
*16- 8 वर्ष, 1 माह, 21 दिन की आयु में गोपियों के साथ नृत्य की ।*
*17- 8 वर्ष, 6 माह, 5 दिन की आयु में सुदर्शन गन्धर्व का उद्धार किया ।*
*18- 8 वर्ष, 6 माह, 21 दिन की उम्र में शंखचूड़ दैत्य का वध किया ।*
*19- 9 वर्ष की आयु में अरिष्टासुर (वृषभासुर) और केशी दैत्य का वध करने से ‘केशव’ पड़ा ।*
*20- 10 वर्ष, 2 माह, 20 दिन की आयु में मथुरा नगरी में कंस का वध किया एवं कंस के पिता उग्रसेन को मथुरा के सिंहासन दोबारा बैठाया ।*
*21- 11 वर्ष की उम्र में अवन्तिका में सांदीपनी मुनि के गरुकुल में 126 दिनों में छः अंगों सहित संपूर्ण वेदों, गजशिक्षा, अश्वशिक्षा और धनुर्वेद (कुल 64 कलाओं) का ज्ञान प्राप्त किया, पञ्चजन दैत्य का वध एवं पाञ्चजन्य शंख को धारण किया ।*
*22- 12 वर्ष की आयु में उपनयन (यज्ञोपवीत) संस्कार हुआ ।*
*23- 12 से 28 वर्ष की आयु तक मथुरा में जरासन्ध को 17 बार पराजित किया ।*
*24- 28 वर्ष की आयु में रत्नाकर (सिंधुसागर) पर द्वारका नगरी की स्थापना की एवं इसी उम्र में मथुरा में कालयवन की सेना का संहार किया ।*
*25- 29 से 37 वर्ष की आयु में रुक्मिणी- हरण, द्वारका में रुक्मिणी से विवाह, स्यमन्तक मणि - प्रकरण, जाम्बवती, सत्यभामा एवं कालिन्दी से विवाह, केकय देश की कन्या भद्रा से विवाह, मद्र देश की कन्या लक्ष्मणा से विवाह । इसी आयु में प्राग्ज्योतिषपुर में नरकासुर का वध, नरकासुर की कैद से 16 हजार 100 कन्याओं को मुक्तकर द्वारका भेजा, अमरावती में इन्द्र से अदिति के कुंडल प्राप्त किए, इन्द्रादि देवताओं को जीतकर पारिजात वृक्ष (कल्पवृक्ष) द्वारका लाए, नरकासुर से छुड़ायी गयी 16, 100 कन्याओं से द्वारका में विवाह, शोणितपुर में बाणासुर से युद्ध, उषा और अनिरुद्ध के साथ द्वारका लौटे. एवं पौण्ड्रक, काशीराज, उसके पुत्र सुदक्षिण और कृत्या का वध कर काशी दहन किया ।*
*26- 38 वर्ष 4 माह 17 दिन की आयु में द्रौपदी-स्वयंवर में पांचाल राज्य में उपस्थित हुए ।*
*27- 39 व 45 वर्ष की आयु में विश्वकर्मा के द्वारा पाण्डवों के लिए इन्द्रप्रस्थ का निर्माण करवाया ।*
*28- 71 वर्ष की आयु में सुभद्रा- हरण में अर्जुन की सहायता की ।*
*29- 73 वर्ष की उम्र में इन्द्रप्रस्थ में खाण्डव वन - दाह में अग्नि और अर्जुन की सहायता, मय दानव को सभाभवन-निर्माण के लिए आदेश भी दिया ।*
*30- 75 साल की उम्र में धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय-यज्ञ के निमित्त इन्द्रप्रस्थ में आगमन हुआ ।*
*31- 75 वर्ष 2 माह 20 दिन की आयु में जरासन्ध के वध में भीम की सहायता की ।*
*32- 75 वर्ष 3 माह की आयु में जरासन्ध के कारागार से 20 ,800 राजाओं को मुक्त किया, मगध के सिंहासन पर जरासन्ध-पुत्र सहदेव का राज्याभिषेक किया ।*
*ऐसी जानकारी पाने के लिए हमारे भगवा साम्राज्य और धार्मिक ग्रुप में जरूर सम्मिलित हो*
*33- 75 वर्ष 6 माह 9 दिन की आयु में शिशुपाल का वध किया ।*
*35- 75 वर्ष 7 माह की आयु में द्वारका में शिशुपाल के भाई शाल्व का वध किया ।*
*36- 75 वर्ष 10 माह 24 दिन की उम्र में प्रथम द्यूत-क्रीड़ा में द्रौपदी (चीरहरण) की लाज बचाई ।*
*37- 75 वर्ष 11 माह की आयु में वन में पाण्डवों से भेंट, सुभद्रा और अभिमन्यु को साथ लेकर द्वारका प्रस्थान किया ।*
*38- 89 वर्ष 1 माह 17 दिन की आयु में अभिमन्यु और उत्तरा के विवाह में बारात लेकर विराटनगर पहुँचे ।*
*39- 89 वर्ष 2 माह की उम्र में विराट की राजसभा में कौरवों के अत्याचारों और पाण्डवों के धर्म-व्यवहार का वर्णन करते हुए किसी सुयोग्य दूत को हस्तिनापुर भेजने का प्रस्ताव, द्रुपद को सौंपकर द्वारका-प्रस्थान, द्वारका में दुर्योधन और अर्जुन— दोनों की सहायता की स्वीकृति, अर्जुन का सारथी-कर्म स्वीकार करना किया ।*
*40- 89 वर्ष 2 माह 8 दिन की उम्र में पाण्डवों का सन्धि-प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गयें ।*
*41- 89 वर्ष 3 माह 17 दिन की आयु में कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को ‘भगवद्गीता’ का उपदेश देने के बाद महाभारत-युद्ध में अर्जुन के सारथी बन युद्ध में पाण्डवों की अनेक प्रकार से सहायता की*
*42- 89 वर्ष 4 माह 8 दिन की उम्र में अश्वत्थामा को 3, 000 वर्षों तक जंगल में भटकने का श्राप दिया, एवं इसी उम्र में गान्धारी का श्राप स्वीकार किया ।*
*43- 89 वर्ष 7 माह 7 दिन की आयु में धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करवाया ।*
*44- 91-92 वर्ष की आयु में धर्मराज युधिष्ठिर के अश्वमेध-यज्ञ में सम्मिलित हुए ।*
*45- 125 वर्ष 4 माह की उम्र में द्वारका में यदुवंश कुल का विनाश हुआ, एवं 125 वर्ष 5 माह की उम्र में उद्धव जी को उपदेश दिया ।*
*46- 125 वर्ष 5 माह 21 दिन की आयु में दोपहर 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकंड पर प्रभास क्षेत्र में स्वर्गारोहण और उसी के बाद कलियुग का प्रारम्भ हुआ ।*
*यह सब बातें हमने गीता और महाभारत से चुनकर निकाले फिर भी कुछ लोग योगीराज कृष्ण को बदनाम कर रहे हैं अपने सनातन धर्म की सच्चाई जानो यह सब सच्चाई आपको किताब पढ़ने पर ही मिलेंगी टीवी सीरियल और फिल्मों के माध्यम से झूठ ही परोसा जाता है*
*🙏🕉️🚩 जय श्री कृष्णा 🌹🚩🕉️🙏*
प्रकृत्ति के ऐसे तीन अटूट नियम जिन्हें कभी झुठलाया नहीं जा सकता है।
प्रकृत्ति का पहला नियम वो ये कि यदि खेतों में बीज न डाला जाए तो प्रकृत्ति उसे घास फूस और झाड़ियों से भर देती है। ठीक उसी प्रकार से यदि दिमाग में अच्छे एवं सकारात्मक विचार न भरे जाएं तो बुरे एवं नकारात्मक विचार उसमें अपनी जगह बना लेते हैं।
प्रकृत्ति का दूसरा नियम वो ये कि जिसके पास जो होता है, वो वही दूसरों को बाँटता है। जिसके पास सुख होता है, वो सुख बाँटता है। जिनके पास दुख होता है, वो दुख बाँटता है।
जिसके पास ज्ञान होता है, वो ज्ञान बाँटता है।जिसके पास हास्य होता है, वो हास्य बाँटता है। जिसके पास क्रोध होता है, वो क्रोध बाँटता है। जिसके पास नफरत होती है वो नफरत बाँटता है और जिसके पास भ्रम होता है वो भ्रम फैलाता है।
प्रकृत्ति का तीसरा नियम वो ये कि भोजन न पचने पर रोग बढ़ जाता है। ज्ञान न पचने पर प्रदर्शन बढ़ जाता है। पैसा न पचने पर अनाचार बढ़ जाता है। प्रशंसा न पचने पर अहंकार बढ़ जाता है। सुख न पचने पर पाप बढ़ जाता है। और सम्मान न पचने पर तामस बढ़ जाता है।
प्रकृत्ति अपने आप में एक विश्वविद्यालय ही है। प्रकृत्ति की विभिन्न सीखों को जीवन में उतारकर रखिए
हरे कृष्ण
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें