हरे कृष्ण # hare krishna

 बंसी को साथ ले गए मोहन....
 राधा को पीछे छोड़ दिया।।
 दुख दूर किए  जग के तूने
 फिर राधे का हृदय क्यों तोड़ दिया
 बृज लीला की इस संगिनी को
 बिरह में अकेला छोड़ दिया।।
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              भाव से देखें कैकईकाचरित्र

"दशरथ का कैकई के प्रति क्रोध था जो तब बाहर आया था, जब वे राम के रथ के पीछे भागते भागते गिर पड़े थे तथा कौशल्या तथा कैकई उन्हें संभालने लगी थीं।

कैकई उनके क्रोध से हिचकिचा कर पीछे हट गयीं। कैकई ने उस पथ की ओर देखा जिसपर राम का रथ गया था। 

"पुत्र तुम्हारे जाते ही मुझे यह भी सुनना था", उनके नेत्रों से दो बूदें उनके गालों पर ढलकीं, जिन्हें उन्होंने शीघ्रता से, किसी की दृष्टि पड़ने से पहले ही पोंछ लिया। 

अयोध्या जी में मुर्दिनी छाई थी। राम के साथ ही जैसे अयोध्या जी का सारा तेज, सारा रूप.... जैसे उनके प्राण ही राम के साथ निकल गए थे। 

महल में अपने कक्ष में कैकई ऐसे शांत बैठी थीं जैसे कोई ज्वालामुखी अपनी छाती में दर्द भरा लावा दबाकर बैठा हो। 

तभी मंथरा भोजन की थाली लेकर आई, "महारानी आइए भोजन कर लीजिए।"

कैकई ने सूनी दृष्टि से भोजन की थाली की ओर देखा, जिसमें कई तरह के खाद्य पदार्थ थे, परंतु उनकी दृष्टि का केंद्र था वह कटोरा जिसमें दूध भात था।

"मंझली माँ... ओ मंझली माँ! कहाँ हैं आप?"

"आजा पुत्र, मैं यहीं हूँ गवाक्ष के निकट।"

"माँ, हम सब आज खूब खेले। मुझे बहुत भूख लगी है माँ।"

"मेरा बेटा! मुझे पता ही था कि मेरा राम क्रीड़ा के बाद अपनी मंझली माँ के पास ही भोजन करने आएगा। आजा बैठ, मैं भोजन लाती हूँ।''

"माँ मुझे......"

"जानती हूँ पुत्र, मैं तेरे लिए दूध भात ही लाई हूँ। मुझे विदित है कि मेरे राम को अपनी माँ के हाथों से दूध भात ही खाना अच्छा लगता है।"

"माँ आपको तो सब पता है। अरे भरत भी आ गया। माँ भरत को भी खिलाइए न।"

"नही राम भैया, पहले आप माँ के हाथों से भोजन कर लें, मैं उसके उपरांत कर लूंगा।"

"अरे ऐसे कैसे, राम खा ले और उसका छोटा भाई भूखा रहे, यह कैसे हो सकता है। आओ इधर, मैं तुम्हे अपने हाथों से खिलाऊंगा।"

राम और भरत के बचपन की इन बातों की स्मृति ने उस ज्वालामुखी में विस्फोट कर ही दिया और कैकई फफक कर रो ही पड़ीं।

यह देखकर मंथरा ने कहा, "अब तो सब कुछ आपकी योजना के अनुसार ही हो रहा है महारानी। फिर आप किसलिए रो रही हैं?"

"योजना...", कैकई ने गहरी साँस ली, "मेरी आँखों का तारा वनों में रहने चला गया। मेरे पति ने मुझे त्याग दिया। अयोध्या की सारी प्रजा अपनी इस मंझली महारानी पर थूक रही है। यह सब मेरी योजना ही तो है मंथरा।"

"महारानी...?"

"तुम्हे पता है मंथरा", कैकई ने अपनी आँखों में आँसू भरकर कहा, " मेरे राम को दूध भात बहुत अच्छा लगता है। बचपन में वह हमेशा मेरे हाथ से ही दूध भात खाता था और मैंने उसे एक या दो नही बल्कि चौदह वर्ष के लिए दूध भात से वंचित कर दिया। वन में उसे अनाज खाने की अनुमति नही है। जब तक मेरा राम वापस अयोध्या नही आ जाता तब तक मैं भी इस दूध भात का त्याग करती हूँ।"

"परंतु महारानी, अब भरत को राज सिंहासन मिल जाएगा।"

"हाहाहा", कैकई ने फीकी हँसी के साथ कहा, " मंथरा, बचपन में जब मैं राम को खाना खिलाती थी तो भरत तब तक मेरे हाथ से खाना नही खाता था जब तक राम खाना नही खा लेता था। तुम्हे लगता है कि वह अयोध्या के सिंहासन को स्वीकारेगा। कभी नही। राम उसकी आत्मा है। तुम देखना मंथरा, जब वह आएगा तो  वह मुझे माता भी मानने से मना कर देगा।"

"महारानी", मंथरा का स्वर काँपा, " फिर आपने महाराज से दो वरदान क्यों ....."।

"भरत हेतु राज्य मांगने के लिए मुझे कोई वरदान मांगने की आवश्यकता नही थी मंथरा। यदि मैं राम से एक बार हँसी में भी कह देती तो वह स्वीकार कर लेता। सूर्य पूर्व से उदित होना छोड़ सकता है मंथरा परंतु राम अपनी मंझली माँ की कोई बात न माने ऐसा कभी नही हो सकता। मुझे इन वरदानों की आवश्यकता थी ही नही।'', कैकई एक बार फिर से फफक पड़ीं।

"फिर आपने ऐसा क्यों किया महारानी? मुझे तो लगा कि मेरे कहने पर ...."

" नही मंथरा तुम्हारे कहने पर नही, बल्कि मुझे प्रेरणा हो रही थी कि राम के वन जाने में ही विश्व का कल्याण निहित है। राम के वन जाने से ही राम की कीर्ति में सैकड़ों, हजारों बल्कि असंख्य गुना वृद्धि होगी। राम के वन जाने से ही सकल आर्यावर्त में भ्रातप्रेम का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत होगा जिसे संसार युगों तक स्मरण करेगा। मुझे दैवीय प्रेरणा हो रही है मंथरा कि राम के वन जाने से ही राम पुरुषत्व से देवत्व को प्राप्त करेगा। इस समस्त प्रकरण का निमित्त मुझे बनाया गया है मंथरा। स्वप्न में जैसे ब्रह्मा जी ने स्वयं मुझे यह पटकथा सुनाई है। इसीलिए मैंने यह सब किया है। माता पिता अपने पुत्र की भलाई के लिए क्या क्या नही करते। और फिर यहाँ तो सम्पूर्ण जगत की भलाई का प्रश्न है। जो मैने किया है वही मेरे राम के लिए अच्छा है मंथरा।"

"परंतु इससे तो संसार में आपकी प्रतिष्ठा घटेगी महारानी। लोग आपको बुरा भला कहेंगे, कोसेंगे आपको, आपको कुमाता कहेंगे।"

"मैं राम लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न की माँ हूँ मंथरा। मेरी प्रतिष्ठा मेरे पुत्रों से है, वह कभी नही घटेगी। यदि लोग मुझे बुरा भला कहेंगे तो मैं सुन लूंगी, और मैं कुमाता हूँ या सुमाता इसका निर्णय राम करेगा, मेरे बाकीं पुत्र करेंगे। भले कोई मुझे चाहे कुछ भी कहे परंतु मुझे विश्वास है कि मेरा राम हमेशा मुझे समझेगा।" कैकई ने शून्य में देखते हुए कहा।

फिर कुछ रुककर कहा, "तुम तैयार हो जाओ मंथरा, कुछ समय में  भरत आने वाला है। मेरे साथ तुम्हारा भी बहुत अपमान होने वाला है। 
                   🌹🌹जय सियाराम 🌷🌷
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