hare krishna

ना किसी को तू सता,
        ना किसी की आह ले 

हो सके तो कर भला 
          वरना अपनी राह ले 

ऋग्वेद के कुछ सूक्तों के रचयिता श्री कृष्ण है ।छांदोग्य उपनिषद में भी अंगिरास के शिष्य कृष्ण का उल्लेख है

परंतु यह कृष्ण श्रीमद्भागवत और महाभारत के कृष्ण से बिल्कुल अलग हैं
महाभारत में वर्णित कृष्ण यदुवंशी क्षत्रिय के रूप में अंकित है। धर्म स्थापना उनके अवतार का प्रमुख उदेश्य है ।
वेद वेदांग के ज्ञाता कृष्ण ने गीता के उद्घाटन के रूप में अपने देवत्व का परिचय दिया है ।कृष्ण की बाल लीला ..गोपाल स्वरूप का, प्रारंभ पुराणों से है।

भागवत पुराण ,हरिवंश पुराण, विष्णु पुराण ,और पदम पुराण में उनकी महिमा का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है ।
कृष्ण के दो रूप हैं लोक रक्षक और लोक रंजक महाभारत के कृष्ण लोक रक्षक हैं जबकि पुराणों में वर्णित कृष्ण लोक रंजक हैं ।
आश्चर्य की बात यह है कि श्रीमद्भागवत पुराण में राधा का कहीं उल्लेख नहीं है ।
अन्य पुराणों ब्रह्मवैवर्त पुराण हरिवंश पुराण में राधा को विशेष महत्व दिया गया है ।
पुराणों में महाभारत के कृष्ण और द्वारकाधीश कृष्ण को महत्व ना देकर ब्रज बिहारी कृष्ण को और उनकी लीलाओं को विशेष महत्व दिया है रास पंचाध्यायी में भी गोपियों के साथ श्री कृष्ण की मोहक लीलाओं का वर्णन तो है किंतु राधा का उल्लेख यहां भी नहीं है ।
संस्कृत काव्य के अश्वघोष के ब्रह्म चरित्र काव्य में कृष्ण का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है।
           🌹कृष्ण भक्ति के विविध संप्रदाय🌹
बल्लभ संप्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य हैं और इसमें कृष्ण का स्वरूप पूर्णानंद परब्रह्मा पुरुषोत्तम है
 
निंबार्क संप्रदाय निंबार्काचार्य ने इस संप्रदाय का प्रवर्तन किया है राधा कृष्ण की युगल मूर्ति की यह पूजा करते हैं

राधावल्लभ संप्रदाय ....हित हरिवंश इस के प्रवर्तक हैं राधा ही प्रमुख है श्री कृष्ण ईश्वर उनके भी ईश्वर हैं।

हरिदासी संप्रदाय और इसको सखी संप्रदाय भी कहते हैं।।
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