⚘⚘⚘⚘⚘"परम ऋषि यों को नमस्कार!!⚘⚘⚘⚘⚘
सप्तर्षियों का प्रादुर्भाव श्री ब्रह्मा जी के मानस संकल्प से हुआ है। सृष्टि के विस्तार के लिए ब्रह्मा जी ने अपने ही समान 10 मानस पुत्रों को उत्पन्न किया उनके नाम हैं
मरीचि
अत्रि
अंगिरा
पुलस्त्य
पुलह
क्रतु
भृगु
वशिष्ठ
दक्ष
नारद
यह ऋषि गुणों में श्री ब्रह्मा जी के समान ही है अतः इन्हें पुराणों में ⚘नौ ब्रह्मा⚘ भी कहा जाता है। यह सब भगवान के अनन्य भक्त हैं और उन्हीं के कृपा प्रसाद से समर्थ होकर जीवों का कल्याण करते रहते हैं। यह एक रूप से "नक्षत्र लोक" में सप्त ऋषि मंडल में स्थित रहते हैं और दूसरे रूप में तीनों लोकों में विशेष रुप से" भूलोक" में स्थित रह कर लोगों को धर्म आचरण तथा सदाचार की शिक्षा देते हैं।
तथा ज्ञान, भक्ति ,वैराग्य, तप ,पर भगवत प्रेम ,सत्य ,परोपकार, क्षमा, अहिंसा, आदि।सात्विक गुणों की प्रतिष्ठा करते हैं ।
प्रति चार युगबीतने पर ...वेदविप्लव... होता है, इसलिए सप्त ऋषि गण भूतल पर अवतीर्ण होकर वेद का उद्धार करते हैं। अलग-अलग मन्वंतरों में सप्त ऋषि बदल जाते हैं।
मनु काल ही मन्वंतर कहलाता है ।ब्रह्मा जी के 1 दिन में 14 मनु होते हैं 14 मनु और मनु पुत्र एक-एक कर समस्त पृथ्वी के राजा होकर धर्म पूर्वक प्रजा का पालन करते हैं ।मनुओं के नामानुसार ही 14 मन्वंतरों 14 भिन्न-भिन्न नाम पड़े हैं ।
इन 14 मनुओं में प्रथम मनु का नाम *स्वायंभू मनु* है ।
भगवान विष्णु के नाभिपदम से चतुर्मुख ब्रह्मा जी ने आविर्भूत होकर मैथुनी सृष्टि के संकल्प को लेकर अपने ही शरीर से *स्वायंभू मनु* तथा महारानी *शतरूपा *को प्रकट किया ।यह आदि मनु ही प्रथम मनु हैं जिसके नाम से स्वायंभुव मन्वंतर का नाम पड़ा।
प्रत्येक मन्वंतर में सप्त ऋषि भिन्न-भिन्न रामरूपों से अवतरित होते हैं पुराणों में इस बात का विस्तार से वर्णन है यहां विष्णु पुराण के अनुसार 14 मन्वंतरों के सप्तर्षियों का प्रथक प्रथक नाम दिया जा रहा है
1: प्रथम स्वायंभुव मन्वंतर में
मरीचि
अत्रि ,
अंगिरा
पुलस्त्य
पुलह
विशिष्ट आते हैं
2: द्वितीय सवारोचिष मन्वंतर में
ऊर्ज्ज
स्तंभ
वात
प्राण
पृषभ
निरय
और परीवान
3: तृतीय उत्तम मन्वंतर में
महर्षि वशिष्ठ के सातों पुत्र
4: चतुर्थ तामस मन्वंतर में
ज्योतिर्धामा
पृथु
काव्य
चैत्र
अग्नि
वनक
और पीवर
5: पंचम रैवत मन्वंतर में
हिरण निरुमा वेद श्री उधर बाहु वेद बाहु सुदामा भजन और महामुनी
6: षष्ठ चाक्षुष मन्वंतर में
सुमेधा
बिरजा
हविष्मान
उत्तम
मधु
अति नामा
और सहिष्णु
वर्तमान.......✍
7: सप्तम वैवस्वत मन्वंतर में
कश्यप
अत्रि
वशिष्ठ
विश्वामित्र
गौतम
जमदग्नि
भारद्वाज
8:अष्टम सावर्णिक मन्वंतर में
गालव
दीप्तिमान
राम
अश्वथामा
कृप
व्यास
9: नवम दक्षसावर्णी मन्वंतर में
मेधातिथि
बसु
सत्य
ज्योतिष्मान
द्युतिमान
सवन
भव्य
10: दशम ब्रह्मासावर्णि मन्वंतर में
तपोमूर्ति
हविष्मान
सुकृत
सत्य
नाभाग
अप्रतिमौझा
सत्यकेतु ।
11: एकादश धर्मसावर्णी मन्वंतर में
वपुष्मान
घृणि
आरुणि
निःस्वर
हविष्मान
अनघ
अग्नितेजा
12: द्वादश रूद्र सावर्णी मन्वंतर में
तपोद्युती
तपस्वी
सुतपा
तपोमूर्ति
तपोधन
तपोरति
तपोधृति
13: त्रयोदश देव सावर्णी मन्वंतर में
धृतिमान
अव्यय
तत्वदर्शी
निरुत्सुक
निर्मोह
सुतपा
निष्प्रकम्प
14: चतुर्दश इन्द्रसावर्णी मन्वंतर में
अग्निध्र
अग्निबाहु
शुची
युक्त
मागध
शुक्र
जित
इस प्रकार 14 मन्वंतरों में सप्तऋषियों का परिगणन पृथक पृथक नाम रूप से हुआ है
इन ऋषियों की अपार महिमा है यह सभी तपोधन है।
स्रोत कल्याण
गीताप्रेस सौजन्य अचलाएसगुलेरिया
।हिन्दी शायरी दिल से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें