hare krishna हरे कृष्ण

*क्या है कृष्ण होने के मायने ?*
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पहली गाली पर 'सर काटने' की शक्ति होने बाद भी; यदि 99 और गाली सुनने का 'सामर्थ्य' है, तो वो कृष्ण है।
सुदर्शन' जैसा शस्त्र होने के बाद भी; यदि हाथ में हमेशा 'मुरली' है, तो वो कृष्ण है।
'द्वारिका' का वैभव होने के बाद भी; यदि 'सुदामा" मित्र है, तो वो कृष्ण है।
'मृत्यु' के फन पर मौजूद होने पर भी; यदि 'नृत्य' है तो, वो कृष्ण है।
सर्वसामर्थ्य' होने पर भी; यदि 'सारथी' है, तो वो कृष्ण है।
 *जय श्रीकृष्ण* 
🌞🌞

सूली ऊपर सेज हमारी

मीरा कहती है सूली ऊपर सेज हमारी ,
सोवण किस विधि होइ ।
'इधर सूली पर हम बैठे है तुम कहते हो सो जाओ ।
 सुली पर सेज लगी हो तो कोई कैसे सोये !
 कल सुबह तुम्हारी मौत आने वाली हो , 
कल सुबह तुम्हे फ़ासी लगने वाली हो , 
तुम आज रात सोओगे ? 
कोई उपाय नही है सोने का।
 यह संसार तो सूली है ,
इसमें सोना कैसे हो सकता है !
इस बात को समझ लो 
 यह संसार सूली है,
 क्योकि इस संसार में सिवाय मौत के और कुछ भी नही घटता ।
जन्म के बाद बस एक ही बात निश्चित है :मौत ।
 जन्म के बाद मृत्यु के अतिरिक्त यहा कुछ भी नही घटता ।
 बाकी तो सब व्यर्थ की बातचीत है ।
जिसे तुम घटना कहते हो 
कि राष्ट्रपति हो गये , 
कि खूब धन कमा लिया , 
कि खूब प्रसिद्धि हो गयी , 
इन सब का कोई भी मूल्य नही है ।
तुम मरे कि सब भूल जाएगा , सब पद खो जाएगा ,
 चार दिन के बाद तुम्हे कोई याद करने वाला भी न बचेगा ।कुछ वर्षों बाद , 
तुम हुए भी थे या नही
हुए थे , 
इसमें भी भेद करना मुश्किल हो जाएगा ।
जरा ख्याल करो ! 
तुमसे पहले अरबो-अरबो
लोग इस पृथ्वी पर हो चुके है । तुम्हारे जैसे ही सपने देखने वाले लोग , 
तुम्हारे जैसे ही धन इकट्ठा करने वाले लोग ,
तुम्हारे जैसे ही पद-लोलुप,
धन -लोलुप !
 वो सब अब कहा है ? 
उनके नाम भी तो पता नही । वे कहा खो गये ? 
हो सकता है , 
जिस धूल में चलकर आये हो उस धूल में पड़े हो ।
तुम जिस जगह पर बैठे हो , वही उनकी लाश गड़ी हो , वही उनकी हड्डिया गल गयी हो ।
कभी वो भी अकड़कर चलते थे जैसे तुम अकड़कर चलते हो ।
कभी किसी का जरा सा धक्का लग गया था तो नाराज हो गए थे , 
तलवारे खिंच गयी थी । 
आज धूल में पड़े है और कोई भी उन्हें पैरो से रौंदे चला जा रहा है ।
न नाराज हो सकते है , न तलवारे खिंच सकते है ।विश्वासी झूठी श्रद्धा में जीता है;:
इसलिए कही पहुच नही पाता। श्रद्धालु यात्रा पर चल पड़ता है।
श्रद्धा की यात्रा ही एक दिन ज्ञान की मंजिल पर पहुचा देती है ।
ज्ञानी पहुच गया , 
श्रद्धालु चल पड़ा ।
विश्वासी सिर्फ सोच रहा है कि चलेगे ,
कि चल रहे है , 
कि पहुच रहे है ।
विश्वासी निद्रा में पड़ा है ।
या तो जौहर बनो या जौहरी बनो ! 
तो ही तुम समझ पाओगे कि मीरा क्या कह रही है।

ओशो




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