इश्क ना सही फिक्र है
तू न सही तेरा जिक्र है
इश्क न सही फिक्र है
तू न सही तेरा ज़िक्र है
चाहत क्या बंधे सीमा में
ये तो फैलता--जैसे इत्र है
भला ही चाहते हैं दिल से,
देख लो रूठ कर फिर से
तुम समझो या मत समझो
छाया मन में तुम्हारा चित्र है
इश्क ना सही फिक्र है
तू न सही तेरा जिक्र है..
Shayaripub.in
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