कुछ

जिंदगी की प्रयोगशाला में प्रयोग चलते रहते हैं
 उन पर कितने रंग चढ़ते उतरते रहते हैं
 हम अपना हक भी हक से मांगते नहीं 
और वह नाजायज हड़प के भी अकड़ते रहते हैं 
हिसाब रखता है वह हर एक कर्म का
 इसलिए रब से सब डरते रहते हैं 
इसलिए उसे रब से सब डरते रहते हैं
                              अचला एस गुलेरिया 
Shayaripub.in

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कुछ

जिंदगी की प्रयोगशाला में प्रयोग चलते रहते हैं  उन पर कितने रंग चढ़ते उतरते रहते हैं  हम अपना हक भी हक से मांगते नहीं  और वह नाजायज हड़प के भ...