धरम सनेह उभयँ मति घेरी।
भइ गति साँप छुछुंदरि केरी॥
राखउँ सुतहि करउँ अनुरोधू।
धरमु जाइ अरु बंधु बिरोधू॥
अर्थ:-धर्म और स्नेह दोनों ने कौसल्याजी की बुद्धि को घेर लिया। उनकी दशा साँप-छछूँदर की सी हो गई। वे सोचने लगीं कि यदि मैं अनुरोध (हठ) करके पुत्र को रख लेती हूँ तो धर्म जाता है और भाइयों में विरोध होता है,॥
श्री रामचरित मानस
अयोध्याकांड (५४)
🙏🌺 जय सीयाराम 🙏 🌺
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