हिन्दी कविता, hindi poem,औरत

मेरे शब्दों के पीछे की खामोशी में मैं रहती हूं 
जो कहना है बस उसे शब्द देती हूं 
जो महसूस करती हूं 
उससे आंखों से कहती हूं........
 मेरे शब्दों के बीच की
 खामोशी में मैं रहती हूं ।।

मुझे रिश्ते संभालने आते हैं 
घर परिवार संवारने आते हैं
 अपनी घुटन के घूंट प्यास बुझा  लेती हूं।।

मुझे मालूम है सब को...... मुझ से क्या आशा है 
"सब सुखी रहें "यही मेरे सुख की परिभाषा है 
अपने दुख दुविधा तकिए में छुपा के रखती हूं ।।
 
मैं आजाद हूं महज खयालों में !!!
 मेरा अस्तित्व घिरा है कड़वे सवालों में..
 हंगामा होता है अगर मर्जी का पहनती हूं।।

 मेरी भावनाओं को सोने में तोल देते हैं
 जो गहरे जख्म दे बोल ऐसे बोल देते हैं 
मैं हंसते लवों से सौ बार से सिसकती हूं।।
 
जो मन को छू गए ...वह छूकर गुजर जाते हैं 
कभी अपने सपने से ..
कभी अपने भी सपने से ..नजर आते हैं.
 सपनों के टूटने का दर्द ....
आए दिन सहती हूं 

मेरे शब्दों के बीच की खामोशी में 
..........मैं रहती हूं।।                           ⚘⚘⚘⚘shayaripub.com⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘
                          हिन्दी शायरी दिल से 

4 टिप्‍पणियां:

कुछ

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