हिन्दी कविता #द्रौपदी

*जब आप अपने आप पर यकीन करने लगते हो, जीवन में चमत्कार होने लगते है।*
    *यदि आप का अपनी वास्तविक क्षमताओं को परखना चाहते हो तो जिंदगी में Risk लेना शुरू कर दो ।*
     *एक अच्छा लीडर काम के सफल होने की संभावनाएं तलाशता है, एक महान लीडर लोगों में सफल होने की संभावनाएं तलाशता है।*
     *फैसला लेने से पहले सोचों, समझो और सवाल करो लेकिन एक बार फैसला ले लिया तो फिर हर हाल में उस पर डटे रहो।*
    *कोई फर्क नहीं पड़ता की लोग आपके बारे में क्या सोचते है, फर्क तो इससे पड़ता है की आप अपने बारे में क्या सोचते है।*
 *जिंदगी के मायने दूसरो से* 
       *मत सीखिए.*
*जिंदगी आपकी है, मायने*
      *भी आप तय करें...*
*एक ये पीढ़ी है, जो "इकट्ठा करने" के लिये जी रही है।*
*एक वो पीढ़ी थी, जो "इकट्ठा रहने" के लिये जीती थी।*
_*क्षमा मांगने वाले  को  कभी दोषी और कमजोर नहीं समझना  चाहिए,  निश्चय  ही  क्षमा  परम  बल  है। ..... क्षमा  निर्बल  मनुष्यों  का  गुण  है  और  बलवानों  का   आभूषण  है।




*एक झेन फकीर रात सोने के ही करीब था कि चोर उसके घर में आ गया।   गांव से दूर था घर।   फकीर को बड़ी बेचैनी हुई की बेचारा चोर !   इतनी रात अमावस की ,  अंधेरी रात में ,  इतने दूर चल कर आया और झोपड़े में कुछ है ही नहीं।  सिर्फ एक कंबल है जो वह खुद ही ओढ़े है।*

*तो वह चुपचाप कंबल को एक कोने में रख कर सरक गया अंधेरे में कि यह कुछ तो ले जाए ;  अन्यथा इतनी दूर आया और खाली हाथ जाए !  ऐसा हमारा सौभाग्य कहां कि यहां चोर आएं।  चोर तो धनियों के घर जाते हैं।  पहली दफे तो यह भाग्य आया कि चोर ने हमें यह सम्मान दिया , और इसको भी हम अधूरा हाथ ,  खाली हाथ भेज दें !  तो सरका कर अपने कंबल को एक कोने में हट गया।   चोर कुछ डरा कि मामला क्या है !   वह अंधेरे में खड़ा देख रहा है।  और जब यह कंबल को छोड़ कर हट गया तो उसे और भी भय लगा कि यह फंसाने की तरकीब तो नहीं है‌ ,  क्या मामला है ?*

*घर में कुछ है भी नहीं , आदमी भी अजीब है !  कुछ भी नहीं है घर में :  बस यह कंबल ही एकमात्र दिखता है , खुद नंगा मालूम होता है।  तो वह निकल कर भागना चाहा।  और उसने सोचा कि इसका कंबल भी किस मतलब का होगा ;  हजार छेद होंगे , सड़ा-गला होगा !  जिसके पास कुछ भी नहीं उसके कंबल का भी क्या भरोसा !*

*भागने को था कि उस फकीर ने आ कर दरवाजे पर रोक लिया और कहा कि ऐसी ज्यादती मत करो , वह कंबल ले जाओ ;  नहीं तो मन में सदा के लिए पीड़ा रह जाएगी कि तुम आए भी ,  खाली हाथ गए।   कौन आता है अंधेरी रात में ?   और हम फकीरों के घर तो कभी कोई आता ही नहीं।  तुमने तो हमें धनी होने का सम्मान दिया।  अब तुम ऐसा न करो , जल्दी न करो ;  ले जाओ कंबल , अन्यथा हमें बड़ी पीड़ा रह जाएगी।  और दुबारा आओ तो जरा खबर कर देना , हम इंतजाम पहले से कर देंगें ,  कुछ मिलेगा जरूर।  पता ही न हो तो हम भी क्या कर सकते हैं ?  ऐसे अतिथि की तरह मत आना ,  एक चिट्ठी डाल देना।*

*वह आदमी तो घबड़ा गया था।  घबड़ाहट में उसे कुछ सूझा नहीं , उसने सोचा ,  लो कंबल और निकल जाओ ;  यह आदमी तो कुछ आदमी जैसा नहीं मालूम पड़ता ,   क्योंकि या तो पागल है या फिर किसी और लोक का है।  जब वह कंबल लेकर भागने लगा तो उस फकीर ने कहा कि देख भाई , दरवाजा अटका दे ;  और ध्यान रख ,  कभी भी किसी के घर जाए ,  दरवाजा जब खोलते हो तो अटका कर जाना चाहिए।*

*वह चोर भी सोचा कि कहां के आदमी से पाला पड़ गया।  और जब वह दरवाजा अटकाने लगा तो उस फकीर ने कहा कि देख धन्यवाद दे दे ,  पीछे काम पड़ेगा।  हमने तुझे कंबल दिया ,  नाहक चोर क्यों बन रहा है ?   धन्यवाद दे दे ,   बात खत्म हो गई।*

*तो उसने धन्यवाद दिया और भागा।   वह पकड़ा गया बाद में।  और चोरियां पकड़ीं ,  यह कंबल भी पकड़ा गया।   मजिस्ट्रेट ने इस फकीर को बुलाया ; क्योंकि अगर यह फकीर कह दे कि  हां‌ ,  यह चोरी करने घर में आया था तो बस काफी है।  इसके वचन को तो भरोसा था मुल्क में।  फिर कोई और खोज-बीन की जरूरत नहीं , यह निष्णात चोर है। लेकिन उस फकीर ने कहा कि नहीं ,  इसने चोरी नहीं की ,  मैंने भेंट दिया था ;  और इसने भेंट के बाद धन्यवाद भी दिया था ,  इसलिए बात खत्म हो गई थी।*

*फकीर तो अदालत से बाहर निकल आया , चोर भी छोड़ दिया गया।  वह आकर फकीर के पैर पकड़ लिया , उसने कहा कि मुझे भी साथ ले चलो।  अब जब तक तुम जैसा न हो जाऊं तब तक चैन न मिलेगी।  तुम भी आदमी गजब के हो।  तुमने मेरी इतनी फिकर की उस रात , कंबल भी दिया और भविष्य की भी चिंता ली  , कि धन्यवाद भी मुझसे दिलवा लिया कि मैं चोर न रह जाऊं।*

*उस फकीर ने कहा :  जब से हम साधु हुए , तब से कोई हमारे लिेए कोई चोर न रहा।   इसे थोड़ा सोचो।  जब तुम साधु हो जाओगे तो तुम्हारे लिए कोई चोर न रह जाएगा।  और जब तक तुम्हारे लिए कोई चोर है , तब तक जानना कि भीतर कोई चोर मौजूद है।   चोर से ही चोर की पहचान होती है। साधु से साधु की पहचान होती है।  तुम साधु हो तो तुम चोर में भी साधु को देख लोगे।  तुम चोर हो तो तुम साधु में भी चोर को देख लोगे।*

*आदमी फंसता है , जाल के कारण नहीं ;  भीतर के मोह , भीतर की माया , भीतर के असत्य , भीतर की मूच्र्छा के कारण।*

*ऐ सच्चे मालिक ,  मुझे अब एक तेरी ही आशा है ! वह झूठ का मैंने सहारा छोड़ दिया ;  अब उस कागज की नाव पर यात्रा नहीं करता।  ..सचे तेरी आस !*

ओशो 🌹




द्रुपद सुता द्रौपदी का महान चरित्र है
हर दशा... हर दिशा.. से दिखता विचित्र है।।

   सौंदर्य की मूर्ति... ज्वलंत ज्वाला रूप सी!!
     आर्यव्रत की एकमात्र... प्रज्ञा बान रूपसी
         कृष्ण की इस कृष्णा का....
            जीवन वेदना का चित्र है ।।
   मूर्त रूप में जन्मी वह द्रुपद के प्रतिशोध सी
    स्त्री निजता के प्रश्न सी... शोषण के विद्रोह सी
              मनसे परम वैराग्नी ....
                जीवन परम पवित्र है
   सम्मान को बचाने में अपमान कितना सह गई..
          द्रुत गृह की कहानी ...कुरुक्षेत्र में
                  लहू बन कर बह गई ...
              नारी प्रतिशोध का कहां ??
                 ऐसा प्रमाण अन्यत्र है
                                अचला एस गुलेरिया
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                       हिन्दी शायरी दिल से 

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