हरे कृष्णा # hare krishna

यदि फूल को ठाकुर जी के गले का 
      हार बनना है तो उसे अपने*
      *पेट में सुई की नोक से छेद*
      *करवाना ही पड़ेगा.

      *सोने के टुकड़े को यदि*
      *ठाकुर जी के गले का हार*
      *बनना है तो उसे भट्टी में*
      *गलना ही पड़ेगा और...*

      *चन्दन को ठाकुर जी के*
      *माथे पर लगना है तो उसे*
      *पत्थर पर घिसना ही पड़ेगा !!*

      *उसी प्रकार यदि मनुष्य को
*हरि* शरणागत होना है तो 
       *कठिनाईयां सहते हुए,*
      *त्याग के मार्ग पर*
      *चलना ही पड़ेगा... !!

*Shayaripub.com 
Yedi phool kothakur ji ke
 gale ki mala bn na  hai to
Use apne pet meiem sui ki nok se chhed krvana hoga
Sone ke tukre ko thakur ji ke gale shingar bn jana hai to bhatti mein glna pdega
Chandan ko thakur ji ke mathe per tilak bn ker lgna hai to pathar per ghisna pdega
Ussi perkar ydi manushy ko 
🌹🌹hari sharnagat🌹🌹 hona hai to
Kathinaiyan September huee
Tyag ke marg per
Chlna hi pdega....


श्री बांकेबिहारी द्वारा पोशाक को स्वयं धारण करना.....

वृंदावन में एक कथा प्रचलित है कि एक ठाकुर भूपेंद्र सिंह नामक व्‍यक्‍ति थे। जिनकी भरतपुर के पास एक रियासत थी। इन्‍होंने अपना पूरा जीवन भोग विलास में बिताया। धर्म के नाम पर ये कभी रामायण की कथा करवाते, तो कभी भागवत की कथा करवाते थे, बस इसी को यह धर्म समझते थे।

झूठी शान और शौकत का दिखावा करता थे। झूठी शान और शौकत का दिखावा करने वाले ठाकुर भूपेंदर सिंह की पत्नी भगवान पर काफी विश्‍वास रखती थी। वह साल में नियमानुसार वृंदावन जा कर श्री बांके बिहारी की पूजा करती। जबकि भूपेंदर सिंह भगवान में कभी आस्‍था विश्‍वास नहीं रखता था।

उल्‍टा वह अपनी बीवी को इस बात का ताना भी मारता था, लेकिन उनकी पत्नी ने कभी भी इस बात का बुरा नहीं माना।

एक दिन भूपेंद्र सिंह शिकार से लौट कर अपने महल को फूलों से सजा हुआ पाते हैं। घर में विशेष प्रसाद बनाया गया था, लेकिन ये आते ही उखड़ गए और नौकरों पर चिल्‍लाने लगे। तब उनकी बीवी ने बताया कि आज बाँके बिहारी का प्रकट दिवस है जिसके बारे में वे उन्‍हें पहले बता चुकी हैं।

लेकिन भूपेंद्र सिंह को याद ना होने के बाद कारण वह उन पर चिल्‍लाने लगे, जिसके बाद उन्‍हें लज्‍जा महसूस हुई और वह अपनी बीवी के सामने चुप हो गए।

धीरे धीरे ठाकुर भूपेंद्र सिंह की रुचि भोग विलास में बढ़ने लगी और वह अपनी पत्‍नी से दूर होते चले गए। ऐसे में उनकी पत्नी बाँके बिहारी जी के और करीब चली गईं और एक दिन उन्‍होंने ठान लिया कि वह अब से वृंदावन में ही रहेंगी।

ठाकुर की पत्नी ने बांके बिहारी के लिए पोशाक तैयार करवाई थी, जिस बारे में ठाकुर को पता चल गया था और वह उसे गायब करवाना चाहते थे। उन्‍होंने पोशाक गायब करवा दी, जिसके बारे में ठाकुर की पत्नी को पता ही नहीं चला और वह वृंदावन में पहुंच कर उस पोशाक के आने का इंतजार करने लगी।

ठाकुर ने पोशाक चोरी होने की खबर वृन्दावन आने पर अपनी पत्नी को देने की सोची। जब वह वृंदावन पहुंचे तो देखते हैं, कि वहां पर सभी भक्‍त बांके बिहारी लाल की जय !! जय जय श्री राधे !! करते हुए भीड़ लगाए हुए थे। लेकिन ठाकुर के मन में अपनी पत्नी को नीचा दिखाने का विचार था।

वह जैसे ही अपनी पत्नी को ढूंढते हुए मंदिर पहुंचे, वह देखते हैं कि उनकी पत्नी उन्‍हें देख कर खुश हो रही होती है और कहती है कि भगवान ने मेरी सुन ली कि तुम आज यहां आए हो। वह ठाकुर जी का हाथ थाम कर बांके बिहारी के सामने ले जाती है। 

बांके बिहारी ने वही पोशाक पहन रखी थी, ठाकुर जैसे ही विग्रह के सामने पहुंचते हैं। वह देखते हैं कि बांके बिहारी ने वही पोषाक पहन रखी थी, जिसे उन्‍होंने चोरी करवाई थी।

इसे देख ठाकुर हैरान परेशान हो गया और जब उसने बांके बिहारी से आंखें मिलाई तब उसकी नजरें खुद शर्म से झुक गईं। उनकी पत्नी ने बताया कि इस पोषाक को बीती रात उनके बेटे ने लाई थी। यह सुन कर ठाकुर का दिमाग खराब हो गया और यह सोचते सोचते उसकी आंख लग गई।

ठाकुर विश्राम करने को गया तो बांके बिहारी सपने में आए और ठाकुर से कहते हैं। क्‍यों हैरान हो गए कि पोशाक मुझ तक कैसे पहुंची। वे बोले कि इस दुनिया में जिसे मुझ तक आना है उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती।

पोषाक तो क्‍या तू खुद को देख, तू भी वृंदावन आ गया। यह बात सुन ठाकुर साहब की नींद खुल जाती है और उनका दिमाग सुन्‍न पड़ जाता है। वह भी बाँके बिहारी जी का भक्त बन जाता है। बाँके बिहारी ऐसी अनेक लीला भक्तो के साथ करते है।
                 श्रीबाँकेबिहारी लाल की जयराधे राधे
⚘⚘⚘⚘हिन्दी शायरी दिल से ⚘⚘⚘⚘

      

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