बहुत ही सुन्दर प्रसंग ..
एक दिन श्री राम जी ने हनुमान जी से कहा कि हनुमान ! मैंने तुम्हें कोई पद नहीं दिया ।मैं चाहता हूँ कि तुम्हें कोई अच्छा सा पद दे दूँ ।क्योंकि सुग्रीव को तुम्हारे कारण किष्किन्धा का पद मिला, विभीषण को भी तुम्हारे कारण लंका का पद मिला और मुझे भी तो तुम्हारी सहायता के कारण ही अयोध्या का पद मिला परंतु तुम्हें कोई पद नहीं मिला।
हनुमानजी ने कहा --- प्रभु ! सबसे ज्यादा लाभ में तो मैं हूँ।
भगवान राम ने पूछा --कैसे।
हनुमान जी ने कहा -सुग्रीव को किष्किन्धा का एक पद मिला, विभीषण को लंका का एक पद मिला और आप को भी अयोध्या एक ही पद मिला।
हनुमानजी ने भगवान के चरणों में सिर रख कर कहा कि प्रभु ! जिसे आपके ये दो दो पद( चरण)मिले हों, वह एक पद क्यों लेना चाहेगा ।
भगवान राम हनुमानजी की बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए ।
सब कै ममता ताग बटोरी।
मम पद मनहि बाँधि वर डोरी।।
shayaripub.com. करि दंडवत भेंट धरि आगें।
प्रभुहि बिलोकत अति अनुरागें॥
सहज सनेह बिबस रघुराई।
पूँछी कुसल निकट बैठाई॥
अर्थ:-दण्डवत करके भेंट सामने रखकर वह अत्यन्त प्रेम से प्रभु को देखने लगा। श्री रघुनाथजी ने स्वाभाविक स्नेह के वश होकर उसे अपने पास बैठाकर कुशल पूछी॥
🌺🌺🌺🌺 जय सीयाराम🌺 🌺🌺🌺
🌺🌺🌺🌺हिन्दी शायरी दिल से 🌺🌺🌺🌺🌺
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