🌷मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ।
🌷सुचि जलु पिअत मुदित मन भयऊ॥🌷
🌷सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू। 🌷
🌷 तेहि श्रम यह लौकिक ब्यवहारू॥🌷
अर्थ:-इसके बाद सबने स्नान किया, जिससे मार्ग का सारी थकावट दूर हो गयी , और पवित्र जल पीते ही मन प्रसन्न हो गया। जिनके स्मरण मात्र से (बार-बार जन्म ने और मरने का) महान श्रम मिट जाता है, उनको 'श्रम' होना- यह केवल लौकिक व्यवहार (नरलीला) है॥
श्री रामचरित मानस
अयोध्याकांड (८६)
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