धाम चार बसते वहीं, बसे जहाँ अनुराग।
स्वयं में सभी कुछ ढूंढ़िए, काशी और प्रयाग।
🌹 कृपा 🌹
द्रौपदी के स्वयंवर में जाते वक्त "श्री कृष्ण" ने अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि..
हे पार्थ , तराजू पर पैर संभालकर रखना...
संतुलन बराबर रखना... लक्ष्य मछली की आंख पर ही केंद्रित हो...उसका खास खयाल रखना...
तो अर्जुन ने कहा : "हे प्रभु" सबकुछ अगर मुझे ही करना है..तो फिर आप क्या करोगे.....
वासुदेव हंसते हुए बोले...हे पार्थ....
जो आप से नहीं होगा वह में करुंगा.....
पार्थ ने कहा.... प्रभु ऐसा क्या है जो मैं नहीं कर सकता ??
वासुदेव फिर हंसे और बोले... जिस अस्थिर , विचलित , हिलते हुए पानी में तुम मछली का निशाना साधोगे...
उस विचलित "पानी" को स्थिर "मैं" रखुंगा !!
कहने का तात्पर्य यह है कि आप चाहे कितने ही निपुण क्यूँ ना हो...कितने ही बुद्धिमान क्यूँ ना हो..
कितने ही महान एवं विवेकपूर्ण क्यूँ ना हो.....
लेकिन आप स्वंय हरेक परिस्थिति के उपर पूर्ण नियंत्रण नहीँ रख सकते...
आप सिर्फ अपना प्रयास कर सकते हैं , लेकिन उसकी भी एक सीमा है....
और जो उस सीमा से आगे की बागडोर संभालता है...उसी का नाम "भगवान" है ....!!!
👏👏👏
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dham char baste vahin
Base jahan anurag
Savayam mein sahi kuchh duniya
Kashi aur pryag
हिन्दी शायरी दिल से
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