मुझ पर बरसता तेरा पावन स्नेह है,।
धड़कन तो तू है कृष्णा, मेरी तो बस देह है.।।.
🌺 भगवद गीता🌺
प्रकृति, पुरुष तथा चेतना
(अध्याय १३)
अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्ययः।
शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते॥
हे अर्जुन! अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता है और न लिप्त ही होता है।
Anu
हिन्दी शायरी दिल से
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