hare krishna # हरे कृष्ण

मेरी कोशिश है कि हिन्दी साहित्य के कवियों से भी आपका परिचय करवाऊं...........
 घनानंद ने कृष्ण के प्रेम में बहुत सुंदर सुंदर रचनाएं लिखी हैं विरह वेदना सुंदर वर्णन उनके कवित और सवैयों में देखने को मिलता है
घनानंद रीतिमुक्त धारा के श्रंगारीकवि हैं इनका जन्म 1689 में तथा मृत्यु नादिरशाह के आक्रमण के समय 1739 में हुई।

यह दिल्ली के बादशाह मोहम्मद शाह के यहां मीर मुंशी थे और कायस्थ जाति के थे ।यह सुजान नाम की वेश्या से प्रेम करते थे।
एक दिन दरबार के कुछ कुचक्रियों ने बादशाह से कहा कि..... मीर मुंशी साहब बहुत अच्छा गाते हैं ।
जब बादशाह ने इन्हें गाना गाने के लिए कहा तो यह टालमटोल करने लगे ।तब लोगों ने कहा कि यह इस तरह नहीं जाएंगे यदि उनकी प्रेमिका सुजान कहे तब यह गाएंगे
वेश्या बुलाई गई और तब घनानंद ने उसकी ओर मुंह करके और बादशाह की ओर पीठ करके गाना सुनाया।
बादशाह इनके गाने पर तो प्रसन्न हुआ किंतु इनकी बेअदबी पर इतना नाराज हुआ कि उसने इन्हें शहर से बाहर निकल जाने का हुक्म दे दिया .....जब उन्होंने सुजान को अपने साथ चलने को कहा तो उसने इंकार कर दिया इस पर इन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया और यह वृंदावन आकर निंबार्क संप्रदाय के वैष्णव हो गए
नादिरशाह के आक्रमण के समय हुए कत्लेआम में यह मारे गए।
लोगों ने नादिरशाह के सैनिकों से कहा कि वृंदावन में
बादशाह का मीर मुंशी रहता है .....उसके पास बहुत सा माल है सिपाहियों ने इन्हें जा घेरा और उनसे जर,जर मतलब धन धन धन कहा तो इन्होंने शब्द को उल्टा रज, रज,रज कहकर तीन मुट्ठी धूल उन पर फेंक दी ।
सैनिकों ने क्रोध में आकर इनको मार डाला धनानंद की कविता में सुजान शब्द का बार बार प्रयोग हुआ है जो कहीं तो
कृष्ण बाची है और कहीं सुजान नामक वेश्या के लिए प्रयोग किया गया है जो इनकी प्रेयसी थी ।
मतलब जो भी हो घनानंद प्रेम के बहुत बड़े कवि रहे हैं और इनका प्रेम अंतर्मुखी है

अति सूधो स्नेह को मार्ग है
जहा नेकु सयानप बांक नहीं
तहां सांचे चलै तजि आपुनपौ
झिझके कपटी जो निसांक नहीं
घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ
इतिहास एक तै त दूसरों आंक नहीं
तुम कौन सी पाटी पढ़े हो लल्ला
मनु लेहु पै देहु छटांक नहीं
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                       हिन्दी शायरी दिल से 

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