संत बचन
*रामचरित मानस के अरण्यकाण्ड के 39 वें दोहे में तुलसीदास जी ने वर्षाकाल में जल से भरे हुए सरोवर की मछलियों के आनन्द की उपमा, अपने धर्म का पालन करनेवाले स्त्री पुरुषों के आनन्द से देते हुए कहा कि -*
*दोहा - सुखी मीन सब एक रस, अति अगाध जल माहिं।*
*जथा धर्मसीलन्ह के, दिन सुख संजुत जाहिं।।*
तुलसीदास जी कहते हैं कि वर्षा के जल से सरोवर (तालाब) नदियां पूर्णरूप से भर गए हैं। इतना अधिक जल भरा हुआ है कि वहां कि मछलियां आनन्द से भर गईं हैं। उनको इतना आनन्द आ गया है कि जैसे - अपने धर्म का पालन करनेवाले स्त्री पुरुषों के जीवन का प्रत्येक दिन सुख और शान्ति से बीतता है।
अब धर्माचरण करनेवाले स्त्री पुरुषों के धर्म पर थोड़ा विचार कर लीजिए -
धर्म, तीनों को नियंत्रित करता है। शरीर को, मन को और वाणी को।
*जथा धर्मसीलन्ह के दिन -*
आप स्वयं ही विचार करिए कि एक गृहस्थ के घर में कौन कौन रहते हैं? पति पत्नी, सन्तान , माता पिता और आजीविका का साधन। बस, इतना ही तो एक गृहस्थ के यहां होता है। इससे अधिक कुछ भी नहीं होता है।
सभी स्त्री पुरुषों का पहला धर्म -
प्रत्येक स्त्री पुरुष का पहला धर्म ये है कि अपनी जिह्वा का नियन्त्रण करे, तथा भोगवासना पर नियंत्रण करे।
पराए धन को विष के समान समझे, तथा पराए स्त्री पुरुषों को मृत्यु के समान समझे।
जिन स्त्री पुरुषों की जीभ को बाहर की बनी हुई वस्तुएं नहीं ललचातीं हैं, उनको रोग नहीं होते हैं और न उसे अधिक धन की आवश्यकता पड़ती है। शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए जिह्वा में नियन्त्रण आवश्यक है।
*(1)स्त्री पुरुष का प्रथम धर्म -*
********************* पत्नी और बच्चों का पालन पोषण करना, तथा जीवित माता पिता की शेष आयु को आदर पूर्वक सेवा सहित प्रसन्न रखना। बस, एक गृहस्थ स्त्री पुरुष के लिए इतना ही कर्तव्य होता है। इससे अधिक इस संसार में और कुछ होता ही नहीं है।
पुरुष, या स्त्री, जिस किसी कार्य को करके धन कमाते हैं, उस कार्य को समय से करें और पूरी ईमानदारी से करें। भले ही शारीरिक परिश्रम करते हों या बौद्धिक परिश्रम करते हों, अर्थात नौकरी करते हों, या फिर घर का काम करते हों ।
उनको जो काम सौंपा गया है, जितना काम सौंपा गया है, वह उतने समय में उस कार्य को करें तो परिश्रम के बदले में जो धन देनेवाला मालिक है, वह बड़ी प्रसन्नता से देगा। यही एक गृहस्थ स्त्री पुरुष का पहला धर्म है।
घर का मुखिया यदि धर्म के अनुसार चलता है तो उसके घर के सभी सदस्य भी जिह्वा और भोगवासना से रहित सदाचार सम्पन्न चलेंगे।
घर के सभी छोटे सदस्य अपने बड़ों का आदर सम्मान करते हुए नम्रता से उनकी सलाह को सुनें और मानें तथा करें, यही धर्म है। अब आपके घर में कलह ही नहीं होगा। बड़े को अपने धर्म का पालन करना चाहिए और छोटों को धर्म का पालन करवाना चाहिए।
घर के सभी सदस्य प्रातःकाल ही उठें और सायंकाल तक के अपने कामों को समय से करें। भोजन, शयन तथा जागना ये तीनों कार्य निश्चित समय पर करने के लिए शास्त्रों में सभी को कहे गए हैं ।
*(2) गृहस्थ स्त्री पुरुषों का दूसरा धर्म -*
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र, किसी भी जाति के हों, अपने अपने धर्म कर्तव्य का ज्ञान करने के लिए तथा विवाह आदि कुल परम्परा का ज्ञान करने के लिए एक विद्वान, शास्त्रों के मर्मज्ञ ब्राह्मण को गुरु के रूप में स्वीकार करें।
समय समय पर घर में आदर पूर्वक बुलाकर उनसे धार्मिक चर्चा करें। हमारे आचरण में क्या कमी है, उसको कैसे दूर करें? क्या ग्रहण करना चाहिए और क्या त्यागना चाहिए, इस विषय पर प्रश्न करें। उनकी धर्म संमत बातों को ध्यान से सुनें और अपने बच्चों को सुनवाएं। अपने अपने धर्म कर्तव्य का बड़ी सावधानी से यथाशक्ति पालन करें। इसी को धर्मशील स्त्री पुरुष कहते हैं ।
माता, पत्नी के स्वरूप में स्त्रियां अपने गृहकार्य को समय से और स्नान आदि पवित्रता से करें। सभी को समय से सात्विक भोजन करवाएं ।
संसार में बस, इतना ही एक गृहस्थ स्त्री पुरुषों का धर्म है और कर्तव्य है।
इसके अतिरिक्त न किसी की निंदा करें और न ही चुगली करें तथा न ही किसी की व्यर्थ में चर्चा करें। आपके विद्वान ब्राह्मण गुरु जी की आज्ञानुसार कर्म करते रहें तो सभी के विवाह, जन्म ,मरण आदि की धार्मिक क्रियाएं भी समय समय पर होतीं रहेंगीं। न कभी धन की कमी पड़ेगी और न ही कभी किसी प्रकार का कलह होगा।
*दिन सुख संजुत जाहिं*
भगवान की आज्ञा स्वरूप शास्त्रों में कहे गए धर्म का यथाशक्ति, यथासमय पालन करनेवाले गृहस्थ के प्रत्येक दिन प्रत्येक क्षण आनन्द उल्लास से व्यतीत होते हैं। सुखों से युक्त अर्थात पूर्ण होते हैं।
यदि गृहस्थ धर्म में नहीं हैं , संसार से विरक्त होकर महात्मा होना है तो भी ऐसे गुरु की शरण ग्रहण करना चाहिए जो अपने सम्प्रदाय के अनुसार शास्त्रों के अनुसार धर्म कर्तव्य का पालन करते हुए स्वयं ही धर्म अधर्म का निर्णय करने में समर्थ हों। शास्त्रों के मर्मज्ञ हों। प्रायः ब्राह्मण ही हों। ऐसे विद्वान महापुरुष की सेवा करते हुए अपने धर्म का पालन करना चाहिए।
ऐसे नर नारियों को धर्मशील कहते हैं जो अपनी जाति के अनुसार, अपनी आयु के अनुसार, तथा अपने अधिकार के अनुसार शास्त्रों में कहे गए कर्तव्य का पालन करते हुए सरलचित्त के होते हैं। धन आने पर उदार होते हैं, अहंकारी नहीं होते हैं। सभी जीवों पर दया करते हैं। ज्ञान का उपयोग आचरण में करते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार, शरीर का मन का तथा वाणी का नियन्त्रण करते हुए देवपूजा, श्राद्ध आदि करके पितृपूजा करते हैं।
*ऐसे धर्मात्मा सदाचारी दयालु स्त्री पुरुषों से न तो मानव समाज को हानि होती है और न ही उनकी स्वयं की हानि, अपयश आदि होते हैं। ऐसे स्त्री पुरुष जहां भी जाते हैं, वहीं सुख और शान्ति पीछे पीछे चलते हैं।*
हिन्दी शायरी दिल से
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