jai siya ram # जय सियाराम

तब मज्जनु करि रघुकुलनाथा। 
पूजि पारथिव नायउ माथा॥
सियँ सुरसरिहि कहेउ कर जोरी। 
मातु मनोरथ पुरउबि मोरी॥

अर्थ:-फिर रघुकुल के स्वामी श्री रामचन्द्रजी ने स्नान करके पार्थिव पूजा की और शिवजी को सिर नवाया। सीताजी ने हाथ जोड़कर गंगाजी से कहा- हे माता! मेरा मनोरथ पूरा कीजिएगा॥

श्री रामचरित मानस 
अयोध्याकांड (१०२)

श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते॥

यह जीवात्मा श्रोत्र, चक्षु और त्वचा को तथा रसना, घ्राण और मन को आश्रय करके -अर्थात इन सबके सहारे से ही विषयों का सेवन करता है

भगवद गीता
पुरुषोत्तम योग
(अध्याय १५) 

🙏 हनुमानजी महाराज प्रिय हो 🙏
🙏 सदगुरु भगवान प्रिय हो 🙏 
                     . Shayaripub.com 
                             हिन्दी शायरी दिल से





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