jai siya ram. # जय सियाराम

गंग बचन सुनि मंगल मूला। 
मुदित सीय सुरसरि अनुकूला॥
तब प्रभु गुहहि कहेउ घर जाहू। 
सुनत सूख मुखु भा उर दाहू॥

अर्थ:-मंगल के मूल गंगाजी के वचन सुनकर और देवनदी को अनुकूल देखकर सीताजी आनंदित हुईं। तब प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने निषादराज गुह से कहा कि भैया! अब तुम घर जाओ! यह सुनते ही उसका मुँह सूख गया और हृदय में दाह उत्पन्न हो गया॥

श्री रामचरित मानस 
अयोध्याकांड (१०३)

अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्‌॥

मैं ही सब प्राणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर अग्नि रूप होकर चार (भक्ष्य, भोज्य, लेह्य और चोष्य, ऐसे चार प्रकार के अन्न होते हैं, उनमें जो चबाकर खाया जाता है, वह 'भक्ष्य' है- जैसे रोटी आदि। जो निगला जाता है, वह 'भोज्य' है- जैसे दूध आदि तथा जो चाटा जाता है, वह 'लेह्य' है- जैसे चटनी आदि और जो चूसा जाता है, वह 'चोष्य' है- जैसे ईख आदि) प्रकार के अन्न को पचाता हूँ

भगवद गीता
पुरुषोत्तम योग
(अध्याय १५) 

🙏 हनुमानजी महाराज प्रिय हो 🙏
🙏 सदगुरु भगवान प्रिय हो 🙏 

सदगुरु स्मरण के साथ 

🙏🌺 शुभ सवार 🙏🌺
🙏🌺 जय सीयाराम 🙏 🌺
        ।                            हिन्दी शायरी दिल से

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