जय माता दी # मां #

साधन-संवाद 

'श्रीभुशुण्डि-गरुड़-संवाद' (तृतीय प्रसंग)
(श्रीरुद्राष्टकम्)

'निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।'
(स्वतन्त्र एवं स्वयं प्रकट होने वाले, त्रिगुणरहित, निर्विकल्प, चेष्टारहित, चैतन्य आकाशरूप और आकाश में वास करनेवाले आपको मैं भजता हूँ।)

यहाँ जितने भी विशेषण दिये गये हैं, उनके अनन्त अर्थ हैं। कुछ की ओर हम संकेत करेंगे, बाकी आप इसे अपनी साधना का अभिन्न अंग बना लीजिए। प्रतिदिन कुछ समय शान्त बैठकर इस स्तुति पर विचार कीजिए। इससे अद्भुत रहस्य उजागर होने लगेंगे। जो भी हमारे आग्रह को स्वीकार करते हुए ऐसा करेंगे, वे अवश्य ही इसकी अलौकिकता से परिचित होंगे।

'निज' का एक अर्थ होता है स्वतन्त्र। प्रभु अपने-आप हैं, वो किसी के अंश नहीं हैं। फिर इसका अर्थ यह भी है कि प्रभु सब-के-सब अर्थात् सर्वरूप हैं। वे सबके निज स्वामी हैं। वे सभी में समाये हैं। सत्ता का आधार वहीं हैं। कुछ है तो वही हैं और कुछ नहीं है तो भी वही हैं।

प्रभु 'निर्विकल्प' अर्थात् तर्कवर्जित हैं। मन उनकी कल्पना नहीं कर सकता है। वाणी उनकी चर्चा नहीं कर सकती है। उनमें कोई विकल्प नहीं घट सकता है। वो एकरस सर्वत्र व्याप्त हैं। प्रभु सदा निर्विकल्पं-समाधि अवस्था में रहने वाले हैं। प्रभु सबकुछ करते हुए भी कर्ता नहीं हैं अर्थात् 'निरीह' हैं।

प्रभु नित्यचैतन्य ब्रह्मस्वरूप आकाशवत् हैं। आकाश तो जड़ है, इसलिए प्रभु को चैतन्यस्वरूप आकाश कहा गया है। आकाश तीन प्रकार का माना गया है- भूताकाश, चित्ताकाश और चिदाकाश। ब्रह्म ही चिदाकाश है। प्रभु सबमें हैं और सबसे पृथक् भी हैं। 

'चिदाकाशमाकाशवासं' के बहुत सारे अर्थ हैं, कुछ को देखिये। प्रभु अत्यन्त सूक्ष्म आकाश में भी सूक्ष्मरूप से बसे हुए हैं। प्रभु के स्वरूप का विस्तार आकाशवत् है। चैतन्यस्वरूप आकाश भी उन प्रभु में बसता है। वो प्रभु अन्तरिक्षवासी हैं। सूक्ष्म और महा आकाश में उनका वास है अथवा उनमें दोनों आकाश बसते हैं। फिर एक अर्थ यह भी है कि वो प्रभु  सत्तारूप दिगम्बर हैं, आकाश ही उनका वस्त्र है।



श्रीराम प्रपत्ति पीठाधीश्वर 
स्वामी (डाॅ.) सौमित्रिप्रपन्नाचार्य 
देवराहा बाबा आश्रम, हरदोई।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। 
 
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता, 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
 
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता, 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
 
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
 
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता, 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
 
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
 
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता, 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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                           हिन्दी शायरी दिल से

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