राम स्तुति # मानस स्तुति

             ब्रह्मादि देवोंद्वारा भगवान की स्तुति
जय जय सुरनायक जन सुखदायक प्रनतपाल भगवंता।
गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिंधुसुता प्रिय कंता॥

पालन सुर धरनी अद्धत करनी मरम न जानइ कोई।
जो   सहज कृपालादीनदयालाकरउअनुग्रह सोई॥

जय जय अबिनासी सब घट बासी ब्यापक परमानंदा।
अबिगत गोतीतम चरित पुनीतंमायारहित मुकुंदा।॥

जेहि लागि बिरागी अति अनुरागी बिगत मोह मुनिब्ंदा।
निसि बासर ध्यावहिं गुनगन गावहिं जयति सच्चिदानंदा।॥

जेहिं सृष्टि उपाई त्रबिध बनाई संग सहाय न दूजा
सो करउ अघारी चिंत हमारी जानिअ भगति ना पूजा

जो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गंजन बिपति बरूथा।
मन बच क्रम बानी छाड़ि सयानी सरन सकल सुरजूथा।॥

सारद श्रति सेषा रिषय असेषा जा कहुँ कोउ नहिं जाना।
   जेहि  दीन पिआरे बेद पुकारे द्रवउ  सो श्रीभगवाना॥
  
 भव बारिधि मंदर सब बिधि सुंदर गुनमंदिर सुखपुंजा।
मुनि सिद्धसकल सुर परमभयातुर नमत नाथ पद कंजा।॥
      
    जानि सभय सुर भूमि सुनि बचन समेत सनेह।
        गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह॥
मेरे भाई बहन ..दुनिया में आत्मबल से भी ऊँचा है ..भजन बल...... 
विश्व का कोई श्रेष्ठ बल हो तो तलगाजरडी दृष्टि से है ..भजन बल .....
कुछ ज़्यादा सीखने की ज़रूरत नहीं है ...जो थोड़ा सीख गये हो ...भूल जाओ ....और राम नाम याद कर लो ....इतनी ही ज़रूरत है .....
हम ज़्यादा सीख गये हैं. ..खाली रहो ...और हरि नाम ....प्रभु का नाम ....

                               बापू के शब्द 

*मानस मुक्तिनाथ।।* दिन-३ दिनांक ९ अक्टूबर
*ये मानस ही मेरा सनमा है।।*
*भजन, ज्ञान,रामकथा,साधुसंग और कथाकार ये है मक्तिद्वार।।*
*मुक्ति का ग्रेटेस्ट डोर है:गुरु।।*
 यहां की जबरदस्त चेतनाओं को प्रणाम करते हुए तीसरे दिन की कथा पर बापू ने बताया कि परम बुद्ध पुरुष अष्टावक्र का मंत्र अनुरणन किया जाए:
*कथं ज्ञानंमाप्योति कथं मुक्तिर् भविष्यति वैराग्यं च कथं प्राप्तमेतद् बृहिमम् प्रभो*
 जहां जनक ने प्रभु शब्द कहकर प्रश्न पूछे। यह प्रभु शब्द समर्थ भाववाचक है।यह ग्रंथ बहूत क्लिस्ट है,लेकिन  संस्कृत बहुत सरल है।तुलसी जी ने इन तीनों प्रश्नों का जवाब एक पंक्ति में दिया है।। याज्ञवल्क्य ने भी जवाब दिए हैं। हमें अष्टावक्र दूर पड़ता है यह त्रेता युगीय घटना, कालका फांसला और तुलसी कालगणना में करीब चार सौ पांचसो साल।वह नेपाल का प्रदेश और तुलसी हमारे भारत में और हमारी लोक बोली में करीब पड़ते हैं।एक ही पंक्ति में तीनों का जवाब तुलसी जी यह है मेरा सलमा बापू ने कहा कि सनम को प्यार से सनमा!सनम को प्यार से सनमा कहते हैं सनमा का उल्टा है मानस।। यही मेरा बलमा है और आज मस्तों की फकीरी सभा में बलमा वाली पंक्तियां:जहां सोई थी, खोई थी, नींद खुली तो बहुत रोई थी, कंकड़ी गुरु ने मारी...आध्यात्मिक ऊंचाई पर ले गए। सब मस्त है।। बापू बोले की कभी सिर्फ महात्मा ही बैठे हैं और कोई ना हो ऐसी एक कथा करनी है और फिर मेरे त्रिभुवन गुरु की कृपा से ऐसे अर्थ लगाने हैं कि कोई मना न कर सके!! बापू ने बताया कि अमियामूरिमय चूरन चारु.. यानी कि गुरु अष्टक हिंग्वाष्टक है। गुरु पाचक है। बापू ने कहा कि कई बार देखा है कि बड़े कलाकार अपने से छोटे कलाकार को संगति नहीं देते, बजाने में गाने में। लेकिन वह भंवर गीत का दृश्य जहां भंवरा गा रहा है और कृष्ण उसे बांसुरी से संगति दे रहे हैं! फिर गोपी गीत,भंवर गीत और कृष्ण लीला के कई प्रसंगों की सजल बातें हुई।।तो ऐसे तुलसी के मानस ग्रंथ को किस ग्रंथ के साथ जोड़ुं? किसके साथ तोलूं? तुलसी जी ने भी क्रम बदल दिया है जवाब देने में। बापू ने बताया कि तालगाजरडा के पास भी मुक्ति के कुछ दरवाजे है:एक द्वार हे रामभजन। दूसरा है ज्ञान-मोक्ष का द्वार है लेकिन यह ज्ञान कहां से आता है?योग से आता है।बापू ने कहा की योग के कई प्रकार है पतंजलि योग,राजयोग, हठयोग यह तो है ही। लेकिन मेरे लिए योग का मतलब किसी बुध्धपुरुष का संयोग और ऐसे साधु का योग ज्ञान की उपलब्धि है।तीसरा राम कथा मोक्ष का द्वार है।। चौथा साधु संग मोक्ष का द्वार है- और साधु कौन है? धरती सहन कर सके इन से भी ज्यादा जो सहन करें वह साधु,करुणा से भरा हो वह साधु, कठोर और कर्कश कभी ना बन पाए वह साधु,प्राणी मात्र को जो हित इच्छता हो,अजातशत्रु शब्द अर्थ के बारे में बापू ने कहा कि हमने इस शब्द का गलत अर्थ निकाला है।दुनिया है तो शत्रु पैदा होगा ही। लेकिन तलगाजरड़ी शब्दकोश कहता है कि किसी के प्रति किसी के भी प्रति शत्रुता पैदा ना हो वह अजातशत्रु साधु।कपिल गीता में भी कहा गया कि विवेकी जन  ऐसे वैसे में आसक्त हो और ऐसी आ सकती किसी साधु में हो जाए तो यह मोक्ष का दरवाजा खोल देता है। वैसे वो सात भूमि अयोध्या,कांची आदि मुक्ति की भूमि है और अष्टावक्र वाली बात भी है लेकिन और सब एक और रखते हुए। मोक्ष का सबसे बड़ा ग्रेटेस्ट डोर है:गुरु ।।गुरु मां भी हो सकती हे,पिता भी हो सकता है, बेटा गुरु हो सकता है,मित्र भी हो सकता है, पत्नी या नारी भी गुरु बन सकती है।बापू ने बताया कि भीष्म पर्व में चार 'ग' कार मोक्ष का दरवाजा बताया गीता,गंगा,गायत्री और गोविंद।। जो संध्या करते हैं उसे गायत्री करना ही पड़ता है लेकिन नहि भी करते हो तो भी २४ बार ना हो सके तो एक बार गायत्री मंत्र का जाप करो क्योंकि यह मोक्ष का द्वार है।।
 आज तीसरा और चौथा नवरात्र है गत साल इसी समय गिरनार पर बापू व्यास पीठ पर से साहजीक उतर कर गरबा लेने लगे थे। ऐसा ही एक अलौकिक दृश्य आज खड़ा हुआ। बापू ने बताया कि आज रुखड का भी जन्मदिन है और बापू व्यासपीठ से नीचे उतरे और सामने श्रोताओं को रास खेल रहे थे सब स्तब्ध हो गए।। वह अलौकिक दृश्य सभी झार झार रोए और बापू ने पूरी मान मर्यादा और गौरव से रास लिए,और फिर वहीं से आगे आकर संगीत मंडली के पास रास किया और फिर बैठे, तबले बजायें!और फिर और नीचे आकर श्रोताओं में आकर रास खेले।। फिर यहां आमंत्रित ब्राह्मण शास्त्री जी को ऊपर बुलाकर माताजी की स्तुति का गान करवाया और यथा योग्य सम्मान भी किया।। 
ऐसा दृश्य कतई देखने नहीं मिलता कई बार बापू कहते हैं कि कभी मैं इतने भाव में आ जाता हूं कि मैं खुद अपने वश में नहीं रहता और कब नीचे उतर जाउं कोइ ठिकाना नहि! और फिर आज यही दृश्य सबने दुनिया के १७२ देशों में बापू की कथा सुनने वालों ने देखा और सब आनंदित हो गई।। 
              Shayaripub.com 


                        हिन्दी शायरी दिल से

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

चल छोड़,shayaripub.in

      अचलाएसगुलेरिया की कलम से                   चल छोड़ चल छोड़ छोड़ कहते कहते वह हमें छोड़ कर चले गए । दिल जिनके बक्से में रखा था वह त...