जय माता दी # jai mata di


🌹   शक्ति ही जीवन और जगत का आधार है। शक्ति के विना जीवन अधूरा और निष्प्राण हो जाता है। जीवनदायिनी शक्ति की पूजा का पर्व ही नवरात्र है। नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्म चारिणी अर्थात व्रह्म को भी चारण यानि अनुशासित करने वाली शक्ति।🌹
   🌹 ब्रह्मचारिणी का दूसरा अर्थ है जो ब्रह्म में ही विचरण करे जो स्वयं ही ब्रह्म स्वरुप हो जाए। इन देवी के बारे में कहा जाता है ये अति सौम्य, सरल, सदा प्रसन्न रहने वाली और कभी भी क्रोध ना करने वाली देवी है।🌹
   🌹 जिस जीवन में विनम्रता, सहजता होगी और पवित्रता होगी, वहाँ ब्रह्म जरूर आते हैं। क्रोध जीवन की ऊर्जा का ह्रास करता है। क्रोध भय, अशांति, विषाद देता है। क्रोध से अपने लोग भी एक दिन पराये हो जाते हैं। कभी भी क्रोध ना करने के कारण ही देवी ब्रह्म चारिणी शक्ति संपन्न होकर सबको नियंत्रित कर रही हैं।🌹
*सफल जीवन के चार* 
                         सूत्र
           *मेहनत करे तो धन बने,*
              *सबर करे तो काम•••••*

             *मीठा बोले तो पहचान बने,*
                            *और* 
                *इज्जत करे तो नाम•।।


       



                  🌹कोई भी यज्ञ हो वहाँ 🌹


       1यज्ञ कुंड का होना अनिवार्य ह
     2 दूसरा ...उसमें अग्नि प्रगट करना होता है ,
      3~: तीसरा महत्त्व का अंग है समीध ,
     4~: चौथा है घृत ...घी ,
   5~: पाँचवा  पवित्र जल की ज़रूरत पड़ती है ,
    6~: छट्ठी वस्तु , यज्ञ कराने वाले कोई आचार्य ,
जो यज्ञ की महिमा समझाये ,
   7~: और आखिर में , कोई यजमान चाहिये ।

      ये है छोटा सा formula सेवा यज्ञ का ,
       तलगाजरडा को ये समझा है कि ,

    1~: सेवा यज्ञ की वेदिका /यज्ञ कुंड है 
         शुरुआत में खालीपन , शून्यता फिर बाद में 
तुम द्रव्य डालो , समीध प्रगटाओ 
      और फिर भस्म निर्माण हो , वो सब पहले खाली हो तो 
    पहले नितांत खालीपना , ये यज्ञ कुंड है ।

2~: सेवा यज्ञ की अग्नि है तीव्रता ,
उष्णता नहीं , प्रभु करे हमारा लक्ष्य पूरा हो ,
उदासीनता नहीं आनी चाहिये ,
तीव्रता बनी रहे , वो लपटें कमजोर नहीं होनी चाहिये , 
वो पवित्र हेतु का विचार कमजोर ना पड़े ।
क्यूँकी ऐसे यज्ञ करो तो हमें सलाह देने वाले बहुत होते हैं स्वभाव की शीतलता के साथ 1 तीव्रता होनी चाहिये।
 ऐसी 1 मीठी अग्नि , ऐसी 1 ठंडी अग्नि ,
जो जलाये नहीं , जागृत करे ।

3~: समीध - हमें खुद के कार्य के लिये 
संदेह पैदा नहीं होना चाहिये ,
संशय के समीध को जलाना होगा ।

4~: पवित्र जल - परिश्रम से निकला पसीना 
और संवेदना से गिरते आँख के आँसू ।

5~: घी- हमारे जीवन में सहज स्नेह ,
ये घी है , हमारी भक्ति , हमारा भाव , ये घी है ।

6~: आचार्य - ऐसे पवित्र सेवा यज्ञ के लिये 
सब का शुभ हो ऐसा विचार रखने वाला ,
ये आचार्य है जग मंगल का विचार ,
विश्व में कोई भी दे , वो सब आचार्य हैं ।

7~: यजमान - जो खुले हाथों से भाव समर्पित करता है ,
वो सेवा यज्ञ का यजमान है ।

#प्रिय_बापू के शब्द 
मानस ~: सेवा यज्ञ 
कथा ~: सावरकुंडला , गुजरात ।
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                         हिन्दी शायरी दिल से 

 


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