jai siya ram # भरत प्रेम

                             नवधा भक्ति
श्रीरामचरितमानसमें जहाँ भी भरतजीका चरित्र आया है, उसको
पढ़नेसे यदि पाठकके हृदयमें थोड़ा भी प्रेम हो तो उसका हृदय गदगदहो जाता है और अश्रुपात होने लगते हैं।
भरतजीकी महिमाके वर्णनमें श्रीतुलसीदासजीने स्वयं कहा है-
भरत प्रेमु तेहि समय जस तस कहि सकइ न सेषु ।
कबिहि अगम जिमि ब्रह्मसुखु अह मम मलिन जनेषु ।

भरत प्रीति नति बिनय बड़ाई। सुनत सुखद बरनत कठिनाई ॥

भरत रहनि समुझनि करतूती। भगति बिरति गुन बिमल बिभूती ॥
बरनत सकल सुकबि सकुचाहीं। सेस गनेस गिरा गमु नाहीं ॥

सिय राम प्रेम पियूष पूरन होत जनमु न भरत को।
मुनि मन अगम जम नियम सम दम बिषम ब्रत आचरत को॥
दुख दाह दारिद दंभ दूषन सुजस मिस अपहरत को
कलिकाल तुलसी से सठन्हि हठि राम सनमुख करत को ॥


श्रीजनकजी तो भरतजीके चरित्र, गुण, भक्ति और प्रेमभावको देखकर
मुग्ध ही हो गये। चित्रकूटमें वे अपनी पत्नी रानी सुनयनासे कहते हैं-

सावधान सुनु सुमुखि सुलोचनि । भरत कथा भव बंध बिमोचनि ॥
धरम राजनय ब्रह्मबिचारू । इहाँ जथामति मोर प्रचारू।।

सो मति मोरि भरत महिमाही। कहै काह छलि छुअति न छाँही ॥
बिधि गनपति अहिपति सिव सारद । कबि कोबिद बुध बुद्धि बिसारद ॥
चरित कीरति करतूती । धरम सील गुन बिमल बिभूती॥
समुझत सुनत सुखद सब काहू । सुचि सुरसरि रुचि निदर सुधाहू

भरत अमित महिमा सुनु रानी। जानहिं रामु न सकहिं बखानी ।।
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देबि परंतु भरतरघुबर की। प्रीति प्रतीति जाइ नहिं तरकी।
भरतु अवधि सनेह ममता की। जद्यपि रामु सीम समता की।
परमारथस्वारथसाधन सिद्धि रामसुख सारे।
भरत न सपनेहुँ मनहुँ निहारे ।
साधन सिद्धि राम पग नेहू । मोहि लखि परत भरत मत एहू ॥

भरतजी महाराज प्रेममयी भक्तिके अगाध सागर थे, या यों
कहिये कि वे साक्षात् प्रेमकी मूर्ति ही थे। जहाँ-कहीं भरतजीका
चरित्र देखते हैं, वहीं प्रेमका समुद्र लहराता दीखता है। इसके
सिवा, वे सद्गुण-सदाचारमें भी अद्वितीय थे। जिनके गुण, चरित्र,
स्वभाव और प्रेमको देखकर श्रीरामचन्द्रजी भी मुग्ध हो गये। वे
कहते हैं-
तात भरत तुम्ह धरम धुरीना । लोक बेद बिद प्रेम प्रबीना ॥
करम बचन मानस बिमल तुम्ह समान तुम्ह तात ।
गुर समाज लघु बंधु गुन कुसमयँ किमि कहि जात ॥



भरतजीकी महिमा कहाँतक बतलायी जाय? उनकी महिमा
रामायणमें भरी पड़ी है। यहाँ तो केवल संक्षेपमें कुछ
दिग्दर्शन कराया
गया है। लेखका कलेवर न बढ़ जाय, इसलिये अधिक प्रमाण उद्धृत
नहीं किये गये।

अब भक्तिके उपर्युक्त नौ प्रकार श्रीभरतजीके जीवन-चरित्रमें जिस
प्रकार घटित हुए हैं, इसका महाभारत, श्रीरामचरितमानस, पद्मपुराण,
वाल्मीकिरामायण, अध्यात्मरामायण आदि ग्रन्थोंके आधारपर कुछ
दिग्दर्शन कराया जाता है।
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