मेरे भाई बहन ..दुनिया में आत्मबल से भी ऊँचा है ..भजन बल......
विश्व का कोई श्रेष्ठ बल हो तो तलगाजरडी दृष्टि से है ..भजन बल .....
कुछ ज़्यादा सीखने की ज़रूरत नहीं है ...जो थोड़ा सीख गये हो ...भूल जाओ ....और राम नाम याद कर लो ....इतनी ही ज़रूरत है .....
हम ज़्यादा सीख गये हैं. ..खाली रहो ...और हरि नाम ....प्रभु का नाम ....
बापू के शब्द
मानस श्रीदेवी
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*मानस मुक्तिनाथ।।* दिन २ दिनांक ८अक्टूबर
*ज्ञान कैसे प्रगट हो?मुक्ति कैसे प्राप्त हो?वैराग्य कैसे जन्मे?*
*महापुरुषों की बानी में अनुवाद नहि,अनुनाद होता है।।*
*क्षमा,सरलता,दया,संतोष और सत्य ये मुक्ति के पंचामृत है।।*
मां भवानी के शारदीय नवरात्र के परम पावन दिनों में रामकथा का आज दूसरा दिन।कल आमुख, भूमिका,प्रस्तावना के रूप में संवाद किया गया।जो राम चरण में रति रखें उसे मुक्ति या भक्ति दोनों फल प्राप्त होते हैं।। बापू ने बताया की वेद ग्रंथों में चार प्रकार की मुक्ति में जटायु को सारुप्य मुक्ति मिली हरी का रूप धारण किया,साधक नारायण रूप हो गया। विभीषण को सालुक्य मुक्ति मिलि।हरि के लोक में निवास।सायुज्य अथवा साष्ट्री वह परमात्मा में विगलित हो जाना, जो रावण को प्राप्त हुआ। नमक की पुतली जैसे सागर में विगलित हो जाए। और सामिप्य मुक्ति गंगा जी को जो निरंतर शिव के संग,शेष को मिली,हलाहल विष को प्राप्त हुई,दुर्वा और पुष्प भगवान के शीश पर चढ़ते हैं,गरुड़ निरंतर भगवान के पास,लक्ष्मीजी,सुदर्शनचक्र,गदा,पद्म ये सामिप्य मुक्ति है, भगवान का सारंग महादेव का त्रिशूल।।
ज्ञान परक ग्रंथोमें यह मुक्ति को परिभाषित किया है और यहां जो हरि भक्त है और सयाने- समझदार-शिलवान है वह निरादर कैसे करें? यह निरादर शब्द,अवग्या,धक्का देना,अनदेखा करना, अवोइड करना, इग्नोर करना साधु के शब्दकोश में नहीं होता।।मुक्ति इतनी महिमा वंत पद है। और कई पर्यायवाची शब्द भी मिले हैं जैसे कि:मोक्ष-मोह का क्षय हो जाए उसी को मैं मोक्ष कहता हूं।मुक्ति भूमि नहीं भूमिका है।। साधक की अवस्था का नाम है। अष्टावक्र गीता जो क्लिस्ट ग्रंथ है,जनक के दरबार में अष्टावक्र आए तो राजसभा में पंडित लोग हंसने लगे,मजाक किया अष्टावक्र मुस्कुरा कर बोला ए जनक! में गलत जगह पर आ गया यहां तो सब चर्मकार बैठे हैं!ज्ञानी कहां है!!और जनक ने ३ प्रश्न पूछे: ज्ञान कैसे प्रगट हो ?मुक्ति कैसे प्राप्त हो? वैराग्य का जन्म कैसे हो? पूछने योग्य तीन ही बात है बाकी सब बकवास है। तर्क की दुनिया में एक पूछता है दूसरा काट देता है सब टाइमपास है।यदि पूछना चाहे तो ज्यादा से ज्यादा ७ प्रश्न ही पूछे।। और फिर जवाब क्रम में नहि मिले। महापुरुषों की वाणी में अनुवाद नहीं अनुनाद होता है।। गुरु जो बोले वह अनुनाद ही करना,अपनी कोई बुद्धि तर्क वितर्क न करना, जैसे बालक दर्पण के सामने चेष्टा करें तो उसका प्रतिबिंब वही चेष्टा करेगा। मोक्ष पाना है तो सभी विषय को विषवत- विष की तरह छोड़ दे। लेकिन हम देहधारी वह विदेह है। हम जैसे नहीं छोड़ सकते।भंवरा चंपा के पुष्प पर बैठता नहीं आसपास मंडराता गुनगुनाता है वैसे ही भोजन त्याग नहीं,ठाकुर को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ले! अच्छे कपड़े पहनना,अच्छे गहने पहने कोई आलोचना नहीं होनी चाहिए मगर ठाकुर को सजाकर करो!
चंपा तुझ में तीन गुण, रूपरंग और बास एक अवगुण एसो भयो भवर न आवे पास।
तो हम यह नेगेटिव बात छोड़ दे,कुछ छूटे तो मोक्ष नहीं लेकिन कुछ ग्रहण करें तो मुक्ति हो।। तो यहां पांच अमृत,जैसे वहां पंच विष को त्याग को कहा है और यह पंचामृत:-क्षमा जीते जी मुक्ति चाहिए तो यह अमृत है।बापू ने बताया की स्वभाव चार प्रकार के होते हैं:विरोधी स्वभाव,बोधी स्वभाव,निरोधी स्वभाव और सुबोध स्वभाव। बापू ने कहा कि आज कल रात भर सोता नहीं। रात भर पीता हूं और पिलाता हूं!दो ही काम करता हूं। तो क्या पीता हूं मैं और क्या पिला रहा हूं?रात भर सोमरस पीते हैं, गलत अर्थ मत करना यह मदिरा नहीं, शराब नहीं लेकिन चंद्र जो अमृत बरसाता है वनस्पति और औषधि दोनों को रस देता है जैसे तुलसी वनस्पति भी है और औषधि भी,यदि आप गलत अर्थ निकाल ले तो अपनी आपकी जिम्मेदारी है।राम नाम का रस वही सोमरस है।यह पीना और दुनिया को पिलाना।। क्षमा करने का मतलब बलिदान करना बदला नहीं लेना।क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात। बड़े क्षमा ही करते हैं और छोटा उत्पात ही करेगा यहां निंदा करने के भी नेटवर्क होते हैं और निंदा करने के भी दाम चूकाये जाते है!दूसरा:सरलता- कोमलता तीसरा अमृत दया,चौथा तोष-संतोष और पांचवा सत्य।। ये सूत्र कठिन भी बहुत और सरल भी बहुत है। कुछ वस्तु कठिन से कठिन है कुछ लोगों के लिए और वही सरल से सरल है कुछ लोगों के लिए!!शुद्ध मुक्ति शब्द तीन बार जो श्लोक है।। और फिर ४ बार मुकुति शब्द जो लोक है।। यही मुक्ति शब्दों को आगम वाले जीवनमुक्ति कहते हैं, कबीर जैसे निर्वाण कहते हैं,परम गति भी कहते हैं।। यहां निरादर शब्द रास नहीं मुक्ति को हटाकर भक्ति करो यह अवहेलना है यहां निरादर शब्द उपेक्षा नहीं लेकिन समजीये की एक राजमार्ग है जहां पहुंचे हुए लोग जा सकते हैं और एक छोटी सी पगडंडी है वहां दीन-हींन लोग जाते हैं दोनों रास्ते वही जाते हैं। लेकिन दीन हीन लोग और समर्थ लोग राजमार्ग को छोड़कर पगडंडी पर चलते हैं तो यह अवहेलना नहीं है। सयाना का मतलब अपनी औकात से वाकीफ और फिर कथा प्रवाह में वंदना प्रकरण में नाम वंदना,राम नाम की वंदना।मंत्र में शक्ति है लेकिन श्रद्धा का बल मिले तब मंत्र और बलवर बनता है। राम नाम महिमा का थोड़ा सा गान करके आज की कथा को विराम दिया गया।।
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सद्गुरु क्या नही देता....
वो बेठता है..तो कैलाश होता है
वो चलता है..तो 'याग्यवलक्य होता है
वो उठता है...तो 'भुसुंडी' होता है
और वो अपनी स्वाभाविक ह्रदय की दीनता में डूबता है....तो 'तुलसी' बन जाता है,,,
- पु.बापू
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