हमारे साथ बहुत दूर तक चले आए
तुम्हारे साथ फ़क़त चार पल गुजारे हुए...
शायर.......तारा इक़बाल
बेवफ़ाई औ' ग़लाज़त इश्क़ में करके
लोग...... किस तरह ये मुस्कुराते हैं
क्या किसी ने की है रुख़सत फिर ज़माने से
कुछ नये तारे फ़लक पर टिमटिमाते हैं
नींद से उठकर टटोलूँ धड़कनें दिल की
आजकल ख्वाबों में भी, वो दिल चुराते हैं
आये थे दिल में मेरे वो ज़िन्दगी बनकर
मौत देकर चल दिये कहकर ....कि जाते हैं
रात को सूरज निकलता है मुहब्बत में
आजकल दिन में भी तारे जगमगाते हैं
औरतों के हक़ में कुछ क़ानून हैं ऐसे
हुस्न की तारीफ़ करने पर डराते हैं
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