#jai siyaram# विनय पद #

तुलसीदास जी के द्वारा लिखित *विनय पत्रिका* के कुछ पद मैं जब मुझे समय लगता है, यहां अपने ब्लॉग के माध्यम से आप तक पहुंचाने का प्रयास करती रहती हूं और जब आप मेरे प्रयास की सराहना करते हैं तो..मुझे बहुत अच्छा लगता है ।
हम सब का प्रयास है कि हमारे सनातन धर्म  में लिखी चीजों का विश्व के कोने कोने में प्रचार-प्रसार हो अपने ब्लॉग में मैं.. साथ ही गीता प्रेस के माध्यम से कुछ किताबें मुझे, जो संत महात्माओं के ऊपर लिखी हुई मिलती हैं ,उनको भी आप के समक्ष रखने का प्रयास कर रही हूं ।
आपके सराहना और सहयोग के लिए मैं आभारी हूं।
                   🌷 विनय पत्रिका 🌷
जाउँ कहाँ तजि चरन तुम्हारे।
काको नाम पतित-पावन जग, केहि अति दीन पियारे॥१॥
कौने देव बराइ बिरद-हित, हठि हठि अधम उधारे।
खग, मृग, ब्याध, पषान, बिटप जड़, जवन कवन सुर तारे । २।॥
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब, माया-बिबस बिचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपनपौ हारे ॥ ३॥


भावार्थ-हे नाथ! आपके चरणोंको छोडकर और कहाँ जाऊँ ?
संसारमें 'पतित -पावन' नाम और किसका है ? (आपकी भाँति) दीन-दुःखियारे किसे बहुत प्यारे हैं ? ॥ १ ॥ आजतक किस देवताने अपने बाने को रखनेके लिये हठपूर्वक चुन-चुनकर नीचोंका उद्धार किया है ? किस देवता ने पक्षी (जटायु), पशु (ऋक्ष-वानर आदि), व्याध (वाल्मीकि), पत्थर अहिल्या), जड़ वृक्ष ((यमलार्जुन ) और यवनोंका उद्धार किया है ?॥ २॥देवता, दैत्य, मुनि, नाग, मनुष्य आदि सभी बेचारे मायाके वश हैं। (स्वयं
बँधा हआ दूसरोंके बन्धनको कैसे खोल सकता है इसलिये) हे प्रभो! यह तुलसीदास अपनेको उन लोगोंके हाथोंमें सौंपकर क्या करे ?॥ ३॥
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                    समर्थ रामदास स्वामी जी

श्रीसूर्याजी पन्तकी पतनी श्रीरेणका बाईके गर्भसे चैत्र शुक्ल
नवमी संवत् १६६५ को ठीक श्रीराम-जन्मके समय जो
तेजोमय बालक हुआ, वही आगे जाकर समर्थ स्वामी
रामदासके नामसे प्रख्यात हुआ।
आठ वर्षकी अवस्थामें ही इन्होंने श्रीहनुमानजीको प्रसन्न कर लिया और उनकी कृपासे भगवान् *श्रीराम* के दर्शन भी इन्हें प्राप्त हुए।भगवान् श्रीरामने ही इन्हें मन्त्र दिया और इनका नाम रामदास रखा।
बारह वर्षकी अवस्थामें माता-पिताने इनके विवाहकी तैयारी की। महाराष्ट्र- -प्रथाके अनुसार जब 'शुभ लग्न सावधान' कहा गया, तब ये सचमुच सावधान हो गये। मण्डप उठकर भागे
और फिर बारह वर्षतक घरके लोगोंको इनका पता नहीं लगा।
घरसे भागकर तैरकर गोदावरी पार हुए और पैदल चलते हुए
पंचवटी पहुँच गये। नासिकके पास टाफली ग्राममें एक गुफामें इन्होंने निवास किया। तीन वर्षतक वहाँ तप करते रहे। वहाँफिर भगवान् श्रीरामके दर्शन हुए। भगवानके आदेश से श्रीसमर्थ तीर्थयात्रा करने निकले।
बारह वर्षतक तपस्या और बारह वर्षकी तीर्थयात्रा करके
समर्थ कृष्णा नदीके तटपर माहुली क्षेत्रमें रहने लगे। यही
अनेक संत मिलने आते थे। श्रीतुकारामजी भी यहीं मिले
थे।श्रीशिवाजी महाराज बार-बार श्रीसमर्थ का दर्शन करने
आते थे। सं० १७१२ में जब श्रीसमर्थ सातारा में राजद्वारापर भिक्षा माँगने पहुँचे, तब शिवाजी महाराजने एक कागजपर अपना पूरा राज देनेकी बात लिखकर कागज उनकी झोलीमें डाल दिया। समर्थ
स्वामी रामदासजीने शिवाजीको समझाया। गुरुके आदेशसे उनके प्रतिनिधिरूपमें शिवाजीने शासन-कार्य चलाना स्वीकार किया।समर्थ स्वामी रामदासजीके जीवनके सम्बन्धरमें अनेक चमत्कारपर्ण घटनाएँ कही जाती हैं। इन्होंने एक मृतक पुरुषको जीवित कर
दिया।
एक अन्धे कारीगरको नेत्र - ज्योति दी और उससे श्रीराम,
लक्ष्मण, जानकी तथा हनुमानजी की मू्तियाँ बनवा्यीं।
महाराष्ट्र-युवकोंमें इन्होंने एक अद्भुत शक्तिका संचार
किया। उनमें धार्मिक चेतना तथा संगठनकी भावना उत्पन्न कर दी। इनके बहुत-से ग्रन्थ मराठीमें हैं जो तत्त्वज्ञान एवं उत्तम शिक्षासे पूर्ण हैं। दासबोध उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ है।
सज्जनगढ़में माध कृष्ण ९ संवत् १७३९ को स्नान करके
भगवान् श्रीरामकी मूर्तिके सामने आसन लगाकर समर्थ बैठ गये। इक्कीस बार ⚘'हर हर' ⚘कहकर जैसे ही अन्तमें उन्होंने⚘श्रीराम ⚘कहा-वैसे ही उनके मुखसे एक ज्योति निकलकरश्रीरामकी मूर्तिमें प्रविष्ट हो गयी!!
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