jai siya ram#जय सियाराम

बेद बचन मुनि मन अगम ते प्रभु करुना ऐन।
बचन किरातन्ह के सुनत जिमि पितु बालक बैन॥ 

अर्थ:-जो वेदों के वचन और मुनियों के मन को भी अगम हैं, वे करुणा के धाम प्रभु श्री रामचन्द्रजी भीलों के वचन इस तरह सुन रहे हैं, जैसे पिता बालकों के वचन सुनता है॥ 

श्री रामचरित मानस 
अयोध्याकांड (१३५) 


शुद्धत्व की यात्रा की तीन बाधा ....

1...अश्रद्धा ....श्रद्धा का बिल्कुल ना होना.

2....अंधविश्वास...... विश्वास का होना ...लेकिन अंधविश्वास ....

3...भयग्रस्त भरोसा... भरोसा है लेकिन भयग्रस्त है... चलो हमने आप पर भरोसा किया... लेकिन उसका भय लगता है....

🌿🍁🌿 माँ सीता जी के तिनके का रहस्य 🌿🍁🌿
 
क्या है माँ सीता जी के तिनके का रहस्य आइए जानते है :-

◆ जब भगवान श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ तब माँ सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ खूब उत्सव मनाया गया, और एक रस्म है की नव-वधू जब ससुराल आती है तो उस नव-वधू के हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है,ताकि जीवन भर घर पर मिठास बनी रहे!

◆ इसलिए माँ सीता जी ने भी उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और राजा दशरथ जी सहित समस्त परिवार और ऋषि-मुनि भी भोजन पर आमंत्रित हुए थे!

◆ माँ सीता जी ने सभी को खीर परोसना शुरू किया और जैसे ही भोजन शुरू होने वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया सभी ने अपनी-अपनी पत्तलें सम्भाली! 

" माँ सीता जी सब देख रही थी...
ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया जिसे माँ सीता जी ने देख लिया था! " 

◆ माँ सीता जी के मन में प्रश्न आया कि खीर में हाथ कैसे डालें तो माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया सीता जी ने सोचा अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा!

◆ लेकिन राजा दशरथ जी माँ सीता जी के इस चमत्कार को देख रहे थे परन्तु वह चुप रहे और अपने कक्ष में पहुँचकर माँ सीता जी को बुलवाया। उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था!

◆ आप तो साक्षात जगत-जननी स्वरूपा हैं, लेकिन बेटी एक बात आप मेरी जरूर याद रखना...
आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना!

◆ इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थीं...

       " तृण धर ओट कहत वैदेही !
         सुमिरि अवधपति परम् सनेही !! "

 यही है...उस तिनके का रहस्य...
कहते है..अगर माँ सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर सकती थी लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही...
ऐसी विशालहृदया थीं माँ सीता जी..🌷🙏🌷
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         🌹🌳🌹 जय जय सियाराम🌹🌳🌹


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