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                   वराहावतार की कहानी 


 श्वेतवाराहकल्प  की बात है, परम पराक्रमी दितीपुत्र हिरण्याक्ष पृथ्वी को लेकर रसातल में चला गया।
 इससे चिंतित होकर पितामह ब्रह्माजी ने भगवान श्री हरि का मन ही मन शरण किया।
स्मरण करते ही भगवान उनके नासिका छिद्र से वाराह शिशु के रूप में निकल पड़े और देखते ही देखते उन्होंने विशाल पर्वत आकार श्वेत बराह का रूप धारण कर लिया और समुद्र के जल में प्रवेश किया और रसातल में पृथ्वी को लाने लगे।
यह देखकर हिरण्याक्ष क्रुद्ध होकर गदा लेकर उनसे युद्ध करने लगा परंतु उन वाराह रूप धारी श्री हरि ने उसे लीला पूर्वक अपने हाथ के प्रहार से मार डाला और पृथ्वी को पुनः अपनी जगह पर प्रतिष्ठित कर दिया।
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