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 संपूर्ण सृष्टि प्रजापति कश्यप की संतान है देवता और दैत्य भी उन्हीं के पुत्र हैं
 परंतु तमोगुण स्वभाव और बलपूर्वक स्वर्ग प्राप्ति की आकांक्षा के कारण दैत्य प्रायः देवताओं पर आक्रमण करते रहते थे।
 इन युद्धों में विजय श्री कभी देवताओं की कभी दैत्यों का वरण करती थी ।⚘
बलि के दैत्याधिपति बनने पर दैत्यों ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया ।
पराजित निरूपाय देवता पितामह की शरण में गए पितामह ने वेद वाणी द्वारा भगवान श्री हरि की स्तुति की और उनसे देवताओं के कष्टों का निवारण करने की प्रार्थना की।
श्री हरि ने देवताओं को सलाह दी कि तुम लोग अपने बंधुत्व का स्मरण करा कर दैत्यों सेसंधि कर लो और अमृत का प्रलोभन देकर उनके साथ समुद्र मंथन करो।
इससे तुम्हें अमृत की प्राप्ति होगी जिसे पीकर तुम अमर हो जाओगे श्रीहरि की योजना के अनुसार देवताओं ने राक्षसों से संधि कर ली। अमृत पान के लिए वह भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए ।
  नागराज वासुकी ने नेति और मन्दराचल ने मथानी बनना स्वीकार  कर लिया।।
जब समुद्र मंथन प्रारंभ हुआ तो आधारहीन मंदराचल समुद्र में डूबने लगा यह देखकर भगवान श्री हरि ने एक लाख योजन विस्तृत पीठ वाले कच्छप का रूप धारण किया और मन्दर गिरी को अपने पीठ पर धारण कर समुद्र मंथन का कार्य सुचारू रूप से संपादित किया इस प्रकार देवताओं की हित के लिए उन परम प्रभु ने कच्छप अवतार लिया।
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           कल्याण के सौजन्य से 

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