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इक बार ही जी भर के सज़ा क्यूँ नहीं देते 
गर हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते 

ऐसे ही अगर मूनिस-ओ-ग़म-ख़्वार हो मेरे 
यारो मुझे मरने की दुआ क्यूँ नहीं देते 

अब शिद्दत-ए-ग़म से मिरा दम घुटने लगा है 
तुम रेशमी ज़ुल्फ़ों की हवा क्यूँ नहीं देते 

फ़र्दा के धुँदलकों में मुझे ढूँडने वालो 
माज़ी के दरीचों से सदा क्यूँ नहीं देते 

मोती हूँ तो फिर सोज़न-ए-मिज़्गाँ से पिरो लो 
आँसू हो तो दामन पे गिरा क्यूँ नहीं देते 

साया हूँ तो फिर साथ न रखने का सबब क्या 
पत्थर हूँ तो रास्ते से हटा क्यूँ नहीं देते

Kal na hum honge na koi gila hoga
Sirf yadon ka silsila hoga
Jo lamhe hain chalo hans ker bita lo
Jane kal jindagi ka kya faisla hoga
            Shayaripub.com 


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 thank God my blog is start working again