इस वीरान गुलशन में महक़ अब भी तुम्हारी है
चाहत का मकां अपना,हुआ तब्दील खंडहर में
मगर उजड़े दरीचों पे झलक़ अब भी तुम्हारी है
बताओ टूटे दिल वालों के, दुखड़े कौन सुनता है
झरोखे आज भी सूने कसक अब भी तुम्हारी है
तेरे गुलाबी पैरों की वो,छाप है घर के गलीचों पे
सूने घर के आंगन को ललक अब भी तुम्हारी है
शहर है मारता तानें,हैं गलियां फब्तियां कसता
ख़नकती कानों में मेरे चहक़ अब भी तुम्हारी है
बगीचा तो उसी दिन ही उजड़ मेरा गया था पर
इस "वीरान" गुलशन में महक़ अब भी तुम्हारी है
Good morning
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