जय सियाराम #siya #ram #सुप्रभात#Good morning#

हमारे घर मे रामायण हो तो हमारा घर मंगल भवन हैं।
...बापू।
                        ।। मानस-रामकथा ।।

हनुमान जी के जन्म की कथा बहुत ही गहन विषय है, बहुत ध्यान से समझना पड़ेगा।
भगवान के अवतार की ही तरह हनुमान जी के अवतरण का स्थान भी अंत:करण ही है। भीतर हनुमान जी उतर आएँ तभी भगवान का कार्य पूर्ण होता है।
देखें, हनुमान जी का प्राकट्य अंजनि से हुआ। तो हनुमान जी को हृदयदेश में प्रकट करने के लिए हमें ही अंजनि होना पड़े। अंजनि कौन है? जिसने अपनी आँखों में अंजन लगा लिया वो अंजनि। यह कौन सा अंजन है? और करता क्या है?
"गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन।
नयन अमिय दृगदोष विभंजन॥"
गुरु जी के चरणों की धूल ही अंजन है, यह नेत्रों के दोषों को दूर कर देता है। अब ध्यान दें कि यह धूल क्या है?
"पद पदम पराग सरस अनुरागा"
गुरु जी के चरणों में जीवित प्रेम हो जाना ही उनके चरणों की धूल मिल जाना है, यही अंजन लग जाना है, और यही साधक का अंजनि हो जाना है।
इधर शंकर कौन हैं? आपके गुरु जी-
"वंदे बोधमयं नित्यं गुरूं शंकर रूपिणम्"
शंकर रूपी सद्गुरुदेव ने जब त्रिदेह रूपी त्रिलोक से माया का लोप कर दिया, तब उनमें से जो तेज निकला, ज्ञान झरने लगा, उपदेश निसृत होने लगा, वह तेज, वायु के माध्यम से अंजनि के कान में पड़ा। आपके भी कान में गुरु जी का उपदेश वायु के माध्यम से ही तो पड़ता है, इसमें हैरानी क्या है?
तो शंकर रूपी आत्मज्ञानी महापुरुष सद्गुरुदेव का यह उपदेश पड़ता तो सबके कानों में है, वायुदेव ही डालते हैं, पर ज्ञान-वैराग्य रूपी हनुमान जी का प्राकट्य उसी के अंत:करण में होता है, जिसका कि उन गुरु जी के चरणों में अत्यंत प्रेम है, जो प्रेम युक्त, अंजन युक्त नेत्रों वाला है, जो अंजनि है।
जो अंजनि नहीं है, वह बेचारा वंचित ही रह जाता है, तर्क करता ही रह जाता है, अंजनि हुए बिना उसे हनुमान जी की प्राप्ति होनी संभव नहीं..!!
                            जय सियाराम 
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