राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर।
ध्यान सकल कल्यानमय सुरतरु तुलसी तोर॥
भावार्थ- भगवान् श्रीरामजीकी बायीं ओर श्रीजानकीजी हैं और
दाहिनी ओर श्रीलक्ष्मणजी हैं- यह ध्यान सम्पूर्णरूपसे कल्याणमय है।
हे तुलसी! तेरे लिये तो यह मनमाना फल देनेवाला कल्पवृक्ष ही है ॥ १ ॥
सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास।
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास॥
भावार्थ-तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीसीताजी और
श्रीलक्ष्मणजीके सहित प्रभु श्री रामचन्द्रजी सुशोभित हो रहे हैं,
देवतागण हर्षित होकर फूल बरसा रहे हैं। भगवानुका यह सगुण
ध्यान सुमंगल-परम कल्याणका निवासस्थान है।॥ २ ॥
पंचबटी बट बिटप तर सीता लखन समेत।
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत॥
भावार्थ-पंचवटीमें वटवृक्षके नीचे श्रीसीताजी और श्रीलक्ष्मणजी-
समेत प्रभु श्रीरामजी सुशोभित हैं । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह ध्यानसब सुमंगलोंको देता है।॥ ३ ॥
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