hindi kavita,shayari,meri rachna,

पगडंडियाँ अब सिमटने लगी हैं।
कहीं घास कहीं खरपात से ढकने लगी हैं

जो जीवन रेखा सी संगिनी थी सफर की
, आज खुद ही जीवन से मिटने लगी हैं।

कम करती थी पथरीले ऊंचे नीचे रास्ते को
आज खुद कम होकर घटने लगी हैं

कदमों को चूमने से जिसके चमक उठते थे पत्थर
अब बस इंतजार में थकने लगी हैं

अठखेलियां करती गुजरती थी जंगलों से
अब जंगल की गोदी में  सिसकने  लगी हैं।

सीढ़ियां लगा कर चढ़ जाती थी पर्वतों को
   अब सड़कों के आगे झुकने लगी हैं।
हिन्द शायरी दिल से

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Good night

हम सच बोलते हैं वहम है तुम्हे! हमें हमारे बारे में पूछ कर तो देखो:! वो न आयेंगे जिनकी रजा में राजी रहते हो कभी उनसे हल्का सा रूठ कर तो देखो:...