hare krishna, सुप्रभात ,shayaripub.com


🌼अधर-रस मुरली लुूटन लागी।🌼
जा रस कौं षट रितु तप कीन्ही, सो रस पियति सभागी।
कहाँ रही, कहेँ तैं यह आई, कौने याहि बुलाई ?
चक्रित भई कहति ब्रजवासिनि यह तौं भली न आई ।।
सावधान क्यौं होति नहीं तुम, उपजी बुरी बलाई ।
सूरदास प्रभु हम पर ताकौ, कीन्हौ सौति बजाई ।।


मुरली के प्रति सौतिया डाह मानती हुई गोपियां परस्पर चर्चा करती हुई कहती हैं कि हे सखी ! यह मुरली तो प्रिय कृष्ण के अधरों का रसपान करने लगी है; जिस अधरामृत को पान
करने की अभिलाषा में हमने छ. ऋ्तुओं का तप किया है, उसी अधरामृत को सभागी (सोभाग्यशालिनी) बनकर यह मुरली पी रही है। हे सखी हम तो कृष्ण के साथ बालपन से हैं, तब से तो यह नहीं
थी, फिर यह मुरली (हमारी सौत वनकर) अव तक कहां रही ? और अब कहां से आई है ? और इसे यहां बुलाया किसने है ? ब्रजबालाएं जितना-जितना मुरली के सम्बन्ध में सोचती हैं, उतनी-उतनी
भ्रमित और परेशान हो रही हैं, वे कहती हैं कि इस मुरली का आना और इस प्रकार कृष्ण पर एकाधिकार
जमा कर उनका अधरामृत पीना हम लोगों के लिए अच्छा संकेत नहीं है; तुम सब उसकी करतूतों को देखते हुए सावधान क्यों नहीं हो जातीं और इससे छुटकारा पाने का समय रहते उपाय क्यों नहीं
सोचती, क्योंकि यह तो हमारे और कृष्ण के प्रेम के बीच बहुत बुरी बला पैदा हो गई है। सूरदास कहते हैं कि लगता है कि जैसे कृष्ण ने इस मुरली को हमारे ऊपर सौत के रूप में घोषित कर दिया
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