*भजगोविन्दं भजगोविन्दं, गोविन्दं भज मूढमते।*
*नामस्मरणादन्यमुपायं, नहि पश्यामो भवतरणे॥*
*योगरतो वा भोगरतो वा, सङ्गरतो वा सङ्गविहीनः।*
*यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं, नन्दति नन्दति नन्दत्येव॥*
*भजगोविन्दं भजगोविन्दं*
*हे मूढ़मते ! गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस भव-सागर से पार जाने का अन्य कोई मार्ग नहीं है, कोई योग में लगा हो या भोग में, संग में आसक्त हो या निसंग हो, पर जिसका मन ब्रह्म में लगा है वो ही आनन्द का अनुभव करता है।*
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