Good evening


आंखों की वीरानी में है सूखी कुम्हलाई शाम 
रात के गहरे आँचल में, हर रोज यूँ ही अकुलाई शाम

सन्नाटे की चादर ओढ़े कंकर पत्थर चुनती है
थके सहमते सूनेपन में आज मिली मुरझाई शाम

संत्रासों की मूक चुभन सी बिखरी डाली-डाली पर 
किस्सा लेकर सहमा सा देखो घर-घर आई शाम

दिन की थी उम्मीद हमें पर सूरज भी अब ढलता था 
धूल भरी आँधी और संग में दहशत भी ले आई शाम 

मंजिल की इन राहों पर था सब्र हमेशा सपनों का 
पत्थर के इस शहर में हमने सूनी सी फिर पाई शाम 

आज कहां कलरव जीवन का, पैबंद मिले हैं खुशियों के 
अनजानी सी रात लिए, आँखों में पथराई शाम 

मिला हाशिए पर ही जीवन और, सफे़ पर मौत मिली
एक अजब सा सन्नाटा, लिए यहाँ सँवलाई शाम 

थके सहमें पंछी लौटे, नीड़ों में भी चुप्पी है 
साया है कुछ पहचाना सा, हैे किसकी परछाई शाम.     .........                        shayaripub.com 


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