साथ तुम्हारे जब होती हूँ गीत, ग़ज़ल हो जाती हूँ
जब तुम सुंदर कह देते हो ताजमहल हो जाती हूँ
फूल के जैसा है तन मेरा तुम बिल्कुल चंदन से हो
कुंज गलिन सी मैं हूँ पावन तुम भी तो मधुबन से हो
शिव बनकर जब छू लेते हो गंगाजल हो जाती हूँ
जब तुम सुंदर कह देते हो ताजमहल हो जाती हूँ
हृदयपत्र पर ढ़ाई आखर लिखकर पूर्ण विराम किया
सौंप के अपना जीवन तुझको सबकुछ तेरे नाम किया
मानसरोवर सी आँखों में नीलकमल हो जाती हूँ
जब तुम सुंदर कह देते हो ताजमहल हो जाती हूँ
यह केवल अनुबंध नहीं है जन्मों का सम्बंध है ये
साथ रहेंगे सात जनम तक पावनतम सौगंध है ये
प्रिय अंक में पाकर खुद को मैं प्रांजल हो जाती हूँ
जब तुम सुंदर कह देते हो ताजमहल हो जाती हूँ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें