Good morning

एक ग़लती हर रोज़ कर रहे हैं हम,, 
जो मिलेगा ही नहीं उस पे मर रहे हैं हम..
एक स्त्री हूँ,
सच है कि मैं,
पावन हूँ तुलसी सी,
पर कभी कभी,
गुलमोहर सी,
हो जाना चाहती हूँ,
कुछ खिली खिली सी,
कुछ नारंगी सी ,
रंगत लिऐ ,
बिना किसी ,
उद्देश्य के ,
मस्त हो जाना 
चाहती हूँ।

मैं एक स्त्री हूँ,
सच है कि मैं,
महकती हूँ बेला सी,
पर कभी कभी ,
गुलाब होना चाहती हूँ,
खुशबू तो हो मुझमें,
रंगत भी प्यारी हो ,
पर कुछ कांटो की ,
तरह थोङा थोङा सा,
चुभना चाहती हूँ।

मैं एक स्त्री हूँ,
सच है कि मैं,
रोशन हूँ चाँद सी,
पर कभी कभी,
मैं बादल सी ,
अंधियारी ,
होना चाहती हूँ,
चमक कर,
थोङी थोङी,
बिजली सी,
बिन कारण ,
बरसना चाहती हूँ ...
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 thank God my blog is start working again