दूर ही रहते हैं कुछ ख्वाब हकीकत से,
हर ख्वाब मुक्कमल हो ज़रूरी तो नहीं ।
दोस्त बन कर देतें है जो अपनेपन का भरोसा ,
यक़ीन कितना भी कर लो वो हम नवाँ नहीं ।
छुपा के रखते हैं खंजर, आंखों में प्यार लिए फिरते हैं !
वो मतलबी बहुत है, जुबां में चाशनी सही ।
डरते बहुत हैं हम भी मगर परहेज नहीं करते !
मीठे के शौकिन है लहू में शक्कर ही सही ।
आदत में शुमार है हर दर्द को पी जाना !
अपनी महरूमियों की अब कोई इंतहा नहीं!
ग़म गैरों का भी हो अपना सा लगता है !
इंसान हैं अखिर हम भी, कोई पत्थर तो नहीं ।
रूमा गगन गुलेरिया
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