Gajal

गजल!
चलो गमों का बोझ थोड़ा कम करते हैं।
पहले मुस्कुराते हैं, फिर  आंखें नम करते हैं।

गुजर जाएगा यह दौर -ए -तन्हाई भी।
अब यादों को ही  हमसफर करते हैं।

छलकना ही लाजमी है अब अश्कों का।
दर्द कैसा भी हो,  चलो दफन करते हैं

छू के एहसास को यूं ही बहल जाते है
अरमान सिसक -सिसक के वरहम करते हैं।

आओगे  इस ओर तुम उम्मीद तो नहीं
फिर भी बुहार -ए-राह हम करते हैं।

इन जख्मों को नासूर ही रहने दो।
आप क्यूँ इनको मरहम करते हैं।

दर्द  भी अब तो  सौगात सा लगता है
इसलिए खुद पर ही सितम करते हैं।

चलो गमों का बोझ थोड़ा कम करते हैं।
पहले मुस्कुराते हैं ,फिर आंखें नम करते हैं।
                    रूमा गगन गुलेरिया।

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