kavita

                   
                     आकर चीर बढ़ाओ
हे माधव तुम लौट के आओ इस धरा के कष्ट मिटाओ।
संकट में  फिर द्रुपद सुता  है आकर तुम चीर बढ़ाओ।
हर चौराहा कौरव सभा और घर-घर में दुशासन है।
गुड़िया करती करुण पुकार और मौन प्रशासन है।
तार-तार रिश्तो के बंधन मर्यादा का नहीं है भान
तिरस्कृत होती हर बेटी करते-करते सब का मान।
दुर्योधन का किया क्यों सहना आकर मुझे बताओ।
संकट में  फिर द्रुपद सुता है आकर चीर बढ़ाओ

उगना चाहूं सूर्य किरण सी फैलाती जीवन प्रकाश।
वात्सल्य प्रेम से ओतप्रोत करुण हृदय जैसे आकाश
क्यों सहुँ अग्नि परीक्षा मैं क्यों बनूं अहिल्या सी शिला
 देव अपराध पर भी क्यों श्राप गौतम का मुझे मिला?
मूढ़मति कभी न समझी  तुम  ही  कुछ समझाओ।संकट में फिर द्रुपद  सुता  है आकर चीर बढ़ाओ।

क्यों अंधेरे रास्तों में चलने से घबराती हूं?
क्यों अपनों के ही बीच अब मै कतराती हूं?
कैसे भूलू  सब पीड़ा ,और अनचाहे आघात
अपने ही  फिर कहते हैं ना करो  तुम प्रतिघात
कैसी  है  यह लाचारी आकर तुम ही बताओ।
संकट में फिर द्रुपद सुता है आ करचीर बढ़ाओ।
                         रूमा गगन गुलेरिया।
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