नज़्म। , गजल "दिल शायराना"

हम सबको को मानते हैं अपना
हमें अपना ,अंपना सिर्फ़ तुम मानते हो ✍

मेरी मुस्कान पर फिदा है जमाना सारा
मेरे गुमनाम जख्मों का पता तुम जानते हो ✍

इतना मुस्कुराते हो बात बात पर
दर्द आंखों से रिसता है, जुबान से झूठ हांकते हो ✍

गर्म लू से बचाया आशियां मिटकर तुमने
सुना है बुढ़ापे की सर्द रातें ,तन्हा काटते हो✍

उठते ही नहीं हो रब के दरवाजे से
यह अब तुम दुआओं में, क्या मांगते हो✍

जो मेरे बारे में सब जानते हैं उन्हे पूछना
 अपना भी कभी गिरेबान झांकते हैं✍
                                         अचलाएस गुलेरिया
                    Shayaripub.com 
हिन्दी शायरी दिल से 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Goodmorning

तुम्हारा  एक प्रणाम🙏🏼 बदल देता है सब परिणाम ।।          Shayaripub.in