हमें अपना ,अंपना सिर्फ़ तुम मानते हो ✍
मेरी मुस्कान पर फिदा है जमाना सारा
मेरे गुमनाम जख्मों का पता तुम जानते हो ✍
इतना मुस्कुराते हो बात बात पर
दर्द आंखों से रिसता है, जुबान से झूठ हांकते हो ✍
गर्म लू से बचाया आशियां मिटकर तुमने
सुना है बुढ़ापे की सर्द रातें ,तन्हा काटते हो✍
उठते ही नहीं हो रब के दरवाजे से
यह अब तुम दुआओं में, क्या मांगते हो✍
जो मेरे बारे में सब जानते हैं उन्हे पूछना
अपना भी कभी गिरेबान झांकते हैं✍
अचलाएस गुलेरिया
अचलाएस गुलेरिया
हिन्दी शायरी दिल से
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