प्रेम अपरिभाषित
परमात्मा
का प्रेम क्या है?
यह एक विराट सागर है।
जिसके अनुभव को
शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
जो इस प्रेम को पा लेता है,
उसके लिए कोई दुख नहीं बचता,
न कोई बुढ़ापा और न कोई मृत्यु।
परमात्मा का प्रेम
आपको बोध कराता है कि आप
शरीर नहीं, शुद्ध चेतना हैं।
आपका कोई जन्म या मृत्यु नहीं है।
और इस शुद्ध चेतना में जीना ही
परम सुख की स्थिति है
आनन्द की स्थिति है।
जीवन की संगति में जीना है।
ओशो
प्रेम अपरिभाषित
पावन नेह सदा ध्रुवनंदा सा बहेगाजगत में प्रेम अपरिभाषित रहेगा
अग्रज वंदना "र"कर रहा है।
देखो बड़ों को नमन कर रहा है।।
छोटों को अंक में "प"भर रहा है
परस्पर स्नेह यह शाश्वत रहेगा ।।
जगत में प्रेम अपरिभाषित रहेगा
कर्म पथ की ऊंची डगर पर चला है ।
"ए "देखो गौरव से कैसे खड़ा है ।।
अकेले खड़े रहना अपनों की खातिर
हम सब को यह सिखाता रहेगा।।
जगत में प्रेम अपरिभाषित रहेगा
ममता मां मरम जिसमें छुपे हैं ।
मान ,नियम ,जिसके आगे झुके हैं।।
संयोग वियोग के भावजगत में
प्रणय को" म"ही सुभाषित करेगा ।।
जगत में प्रेम अपरिभाषित रहेगा
प्रकृति की यह प्रिय सन्नतति है
सम्पूर्ण विश्व इसकी सहज उत्पत्ति है
मानवीय संस्कार सबको सिखा कर
भावों के नूतन रंग भरेगा।।
जगत में प्रेम अपरिभाषित रहेगा ।।
अचला एस गुलेरिया
Superb
जवाब देंहटाएंवाह
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