लिखते लिखते तुझे मैं खुद से जुदा हो बैठा।
दर्द दे - दे मुझे तू मेरा खुदा हो बैठा।।
इतना मसरूफ़ हो गया तेरी मोहब्बत में।
मैं 'अल्पेश' खुद के घर का पता खो बैठा।।
गैरों से क्या गिला जब दिल मेरा मेरा न हुआ।
दिल का मेरे एक टुकड़ा मुझसे खफ़ा हो बैठा।।
जीने मरने की साथ बातें जो करता था कभी।
मेरा अब वो ही चहीता भी गैर हो बैठा।।
दिल में कितनी
ख्वाहिशें हैं ,
कैसे मैं समझाऊं ?
सामने मेरे
तुम रहो बस ,
मैं, तुमको देखे जाऊं। !!
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